पंखुरी के ब्लॉग पे आपका स्वागत है..

जिंदगी का हर दिन ईश्वर की डायरी का एक पन्ना है..तरह-तरह के रंग बिखरते हैं इसपे..कभी लाल..पीले..हरे तो कभी काले सफ़ेद...और हर रंग से बन जाती है कविता..कभी खुशियों से झिलमिलाती है कविता ..कभी उमंगो से लहलहाती है..तो कभी उदासी और खालीपन के सारे किस्से बयां कर देती है कविता.. ..हाँ कविता.--मेरे एहसास और जज्बात की कहानी..तो मेरी जिंदगी के हर रंग से रूबरू होने के लिए पढ़ लीजिये ये पंखुरी की "ओस की बूँद"

मेरी कवितायें पसंद आई तो मुझसे जुड़िये

Friday 6 December 2013

पर ........



ये मुस्कान मुझे है बहुत पसंद
ये सच्चाई बतलाती है
मेरी रूह में बसे हो तुम
ये आईने में दिखलाती है
बड़ी प्यारी है मुझे ये मुस्कान
पर .....इससे भी प्यारे तुम

ये डायरी मुझे है बहुत पसंद
ये सच्चा साथ निभाती है
मेरे हर गम हर ख़ुशी को
आसानी से अपनाती है
बड़ी प्यारी है मुझे ये डायरी
पर… डायरी से प्यारे तुम

ये पेन मुझे है बहुत पसंद
कितने नगमे लिख जाता है
यादें तुम्हारी , नाम तुम्हारा
ख्यालो में जब-जब आता है
लिख कर  डायरी में सब बातें
ये ,मन हल्का कर जाता है
बड़ा प्यारा है ये पेन मुझे
पर ..... इससे भी प्यारे तुम
सबसे प्यारे तुम

-----------------------पारुल'पंखुरी'

Wednesday 4 December 2013

बस वही ..


सूरज कि किरण ,सुनहरी हिरण
चिड़ियों कि चहक फूलो कि महक
आसमां तारो भरा ,प्यारी सी ये धरा
रेशम का दरीचा ,खुशबु भरा बगीचा
चाहिए क्या प्यारी ये तो बता ?
नहीं नहीं ..... ये नहीं
चाहिए मुझे तो, बस वही .....बस वही

सपने मखमली जिनकी खिड़की है खुली
थोड़ी धूप आने दे उन्हें गुनगुनाने दे
दरिया दौड़ता नीला ,तारा सबसे चमकीला
तितलियाँ आसमानी ,ख्वाइश कोई पुरानी
नई सुबह कि आस , कुछ और सांस ??
चाहिए क्या प्यारी ये तो बता
नहीं नहीं .. इनमे से कुछ नहीं
चाहिए मुझे तो बस वही बस वही
बस वही .....................
---------------------------------पारुल 'पंखुरी'

Wednesday 9 October 2013

चीख





















रात हो जाती है जब घनी स्याह
तूफ़ान समुन्दर में उठते हैं अथाह
उस पहर जब
जिन्दा भी मुर्दों की श्रेणी में आते हैं
मरहम से सपने नींद सजाते  हैं
महसूस होता है एक साया
जिस्म पर हाथ फेरता
चूड़ियाँ तब भी टूटती हैं
दर्द की वो भी पराकाष्ठा है
मगर चीख मेरे जिस्म से
बाहर नही निकलती
क्योंकि -
उसके पास "सर्टिफिकेट" है

--------------पारुल 'पंखुरी'

चित्र- साभार गूगल से 

Thursday 26 September 2013

कजरारी...















जीवन-पथ, कांटो का आँचल
यहाँ सपने ही बस सुहाने लगे
पीड़ा तन की तो देती है दिखाई
मन की पीड़ा समझने में ज़माने लगे
शुष्क बनने की निरी कोशिश हुई
नमकीन स्वादों से हम घबराने लगे
अंधेरों से ऐसी मोहब्बत हुई
उजाले आशा के हमें अब सताने लगे
मैं क्या हूँ मैं क्यूं हूँ ,यही ढूँढते
आईने से भी अब हम लजाने लगे
ग़मों की स्याही आँखों में फैली
"कजरारी" तबसे ही हम कहाने लगे
------------------------------------------------पारुल'पंखुरी'

Thursday 5 September 2013

देह्शाला













देह्शाला
भोग का प्याला
पैर की जूती
कपडा फटा पुराना
बिना कुण्डी वाले कमरे में बैठी वैश्या
चलती बस में भेडियो से जूझती आवारा
कूड़े के ढेर पे पड़ा अधनुचा जिस्म
धुएं निकालता फफोलो से भरा चेहरा
लपटों में लिपटा अधजला बदन
खून में लथपथ सिसकती आवाज
कुछ भी समझ लो
बस ...
औरत को इंसान समझने की भूल मत करना

-------------------------पारुल'पंखुरी'

(आखिरी पंक्ति औरतो को संबोधित करते हुए लिखी गयी है )

Thursday 29 August 2013

बस एक ख़त..













 बस एक ख़त लिख दो ..
 प्रेम की कोई बात हो कह लो
 चाँद से रोशनी उधार ले लो
 फूलो से खुशबू तुम ले लो 
 टहनी की एक कलम बना लो
 बस एक ख़त लिख दो

 "क्या चाँद की चांदनी में
 मै तुमको दिखाई देती हूँ .. 
 क्या पानी की कल कल में मै
 तुमको सुनाई देती हूँ 
 क्या इन्द्रधनुष के रंगों में मै 
 झूमती नाचती लगती हूँ
 क्या नीले ऊंचे आसमा में 
 उडती दिखाई देती हूँ ??
 ये सारी बातें हमसे कह दो
 कुछ अपने सपने तुम लिख दो

 कुछ और नहीं कर सकते तो
 कोरा सा एक कागज़ ले लो 
 लेकर अपने हाथो में, उसपे
 प्यार भरा एक चुम्बन रख दो
 देकर स्नेह स्पर्श ख़त को 
 अक्स अपना उसमे तुम भर दो

 वो ख़त नहीं एक तोहफा होगा 
 अनमोल और अनोखा होग
 देकर अपना वो स्नेह स्पर्श 
 मुझको थोडा और जिला दो
 बस एक  ख़त लिख दो 
 हाँ एक ख़त लिख दो
------------------------पारुल 'पंखुरी'

Thursday 15 August 2013

मेरा फर्ज ...



सभी मित्रो को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें





जिसकी गोद में बचपन खिलखिलाया
जिसके आँचल ने दुश्मनों से छुपाया
खुद जुल्म सहे ..हमको बचाया
ऐसी माँ भारती का हम पे कर्ज है
अब माँ को सम्हाले ये मेरा फर्ज है

जिसने गंगा सा निर्मल जल है बहाया
जिसने हिमालय सा प्रहरी रक्षा को बिठाया
जिसने कपूतो को भी ममता की छाँव में सुलाया
ऐसी माँ भारती का हम पे कर्ज है
अब माँ को संभाले ये मेरा फर्ज है

क्यों करें हम इन्तजार बरसो तलक
जन्मेगा फिर से सुखदेव या कोई भगत
फिर लेगी कोई लक्ष्मी अवतार है
कोढ़ हुआ देश को ये बड़ा मर्ज है
तुरंत इसका उपचार मेरा फर्ज है

डर डर के जीना कोई जीना नहीं
अब इस दर्द को हमे और पीना नहीं
घर घर में बनाने हैं भगत और गुरु
के बिन कफ़न के .. कोई अब निकले नहीं
मेरी आज बस यही अर्ज है
माँ भारती को बचाना अब मेरा फर्ज है ...

-------------------------पारुल'पंखुरी'

Tuesday 13 August 2013

मीठे बादल...












उमड़ घुमड़ घनन घनन
गरज रहे मीठे बादल
बादल से काला रंग ले
आँखें कजरारी बना लूं
नीला रंग ले आसमा का
चूड़िया कांच की सजा लूं
वो दूर लाल उड़ते गोले को
माथे पे सजा लूं
और इन्द्रधनुष के रंग बैंगनी
झिलमिल बिंदिया की बना लूं
नई हवा जो चली आज ये
तन मन इस से महका लूं
बारिश की झरती बूंदों से
धो डालू मन की स्याही
फैली स्याही ..हो गई कोरी
ज्यो कन्या हो बिन ब्याही
इस क्षण ऐसा मिला है सुख
नाही जाए मोसे बखावत
नयन अश्रु से नई आस का
करूँ मै मन भर स्वागत

------पारुल'पंखुरी'

Sunday 4 August 2013

मन मंथन ....



विचारों का समंदर, मन मथ रहा है

ख्वाहिशो का पारिजात
 
कभी नाउम्मीदी का हलाहल
 
स्वप्नों का कौस्तुभ
 
कभी जीवन रुपी ज्येष्ठा
 
मंथन , ज्वारभाटा उठा रहा है
 
तृष्णा लेखनी की, बढ़ा रहा है
.....

संभवतः धन्वन्तरी के आने की बाट जोह रही है ये !!!

-----पारुल 'पंखुरी'



पारिजात --पुरातन काल में समुन्दर मंथन के निकला एक दैवीय पेड़ जो न कभी मुरझा सकता है न मर सकता है 

हलाहल ---मंथन के दौरान निकला विष
कौस्तुभ- उसी दौरान निकला एक नगीना जो मूल्यवान है
ज्येष्ठा --- पुरातन काल में समुन्द्र मंथन के दौरान निकली दुर्भाग्य की देवी
धन्वन्तरी --- समुन्द्र मंथन के दौरान निकले ये एक चिकित्सक थे जो अपने हाथो में अमृत लेकर आये थे

Tuesday 30 July 2013

मनी प्लांट ...






हाँ ....ऐसा ही है तुम्हारा प्यार
जिसके बीज का अंश ..सीले दिल पे गिरा
बेहिसाब घुटन 

प्रेमरिक्त हवा और खारे पानी से भी
देखो कितना पनप गया है
सारी रुकावटों के बीच अपनी जगह बना ही ली उसने
नए नए एहसासों के पत्ते हर रोज निकलते हैं
महसूस कराते हैं की मै बंजर नहीं
वो भी मेरे दिल की दीवारों के सहारे
मन मस्तिष्क सब जगह पंहुच गया है
डरती हूँ 

कहीं उस नव-पल्लवित पौधे की तरह 
इसे भी कोई काट न दे |

------पारुल'पंखुरी'

Monday 15 July 2013

मिले.. ना मिले...








पथ पे जीवन-पगडण्डी के

पल पल पीड़ा के शूल चुभे

दर्द अब बन गया साथी

राह में फूल मिले.. ना मिले



दिवस बना महीना साल

इन्तजार अनिश्चितकाल

ख़ामोशी अब आदत बन गई

स्याह होठ हिले... ना हिले



मन-क्यारी के सुन्दर फूल

मुरझा गए सब धीरे-धीरे

उजड़ी अब इस बगिया में

कोमल कलियाँ खिले.. ना खिले



जख्म हो गया.. है पुराना

जिंदगी बन गई अफसाना

घाव अब हो गए ढीठ

मरहम कोई मले... ना मले



जीवन है अंधी सुरंग

तनहा ही आगे चलना है

अब चाह किसे ..परवाह किसे

संग कोई चले... ना चले

---------------------------------पारुल'पंखुरी'

Saturday 6 July 2013

इश्क....



वो कहते हैं
ये सपना है  झूठा
इस  वहम  को अब तोड़  दे
मै  कहती हूँ ..
वो हवा अभी चली नहीं
जो मुझे उसके दर पे छोड़ दे ..

वो कहते हैं
किसी की याद में जिंदगी
बिताने से क्या फ़ायदा ...
मै  कहती हूँ ..
प्यार में फ़ायदा नुकसान देखूं ,
मै  नहीं जानती ऐसा कायदा
 
वो कहते हैं ..
यूँ तड़प तड़प के
जवानी बर्बाद नहीं करते
आँखें खोल के देखो .
हजारों आहें भरते हैं ..
मै  कहती हूँ ..
मेरी एक आह उस तक
नाजाने कैसे पहुंचेगी ..
वो कैसे जानेगा की हम
उसपे कितना मरते हैं

वो कहते हैं ...
संभल जा, अब भी वक़्त है
वरना बहुत पछताएगी ..
मै कहती हूँ
एक नजर दीदार की प्यासी हूँ
वो घडी जन्नत का सुकून दे जायेगी

वो कहते हैं ..
पगला गई है तू
तेरा, कुछ हो नहीं सकता
इश्क बर्बाद कर देगा
समझ ले ..ना कर नादानी

मै  कहती हूँ
कैसे छोड़ दू मै  इश्क
जिसे आंसू से सींचा है
बिन जिसके जीवन रीता है
पल पल  आस में जिसकी
मन उम्मीदों की चादर सीता है
उस इश्क को बिसरा दूँ
ये मुझसे हो नहीं सकता
दोहराने दे इतिहास को
फिर वही कहानी
मै  तो हूँ और रहूंगी
उसके प्रेम में दीवानी
-----------------पारुल'पंखुरी'



Monday 1 July 2013

मन की बात ...


सौ तरह की बातें ...
हजारो मचल रहे जज्बात ...
चाहती हूँ शब्दों में बहाना ...
इन्द्रधनुषी स्याही में डुबोकर ..
मन की हर एक बात ....
सोच रही हूँ मन के पंख होते तो ...
उन पंखो को स्याही में डुबोकर
मै खुद ही कागज़ पर बिछ जाती ..
मेरे पंखो के निशान जब रंगबिरंगी स्याही में डूबते
और कागज़ पर उड़ान भरते
तो वही मेरे दिल का सार हाल बयां कर पाते
वही मेरे दिल का हाल बयां कर पाते...

-------------पारुल 'पंखुरी '

Friday 28 June 2013

लव लैटर ...

मेरे प्यारे दोस्तों ...आज बहुत दिनों बाद आप सब से रूबरू होने का मौका मिला ...इतने सारे कमेंट्स  और notifications मिले ...पढ़ के मन प्रसन्न हो गया ...जिन्होंने मेरी अनुपस्थिति में मेरी रचनाओं को मान दिया उनका बहुत बहुत धन्यवाद ...और साथ ही माफ़ी मांगूंगी की मै समय पर उनके ब्लोग्स पर नहीं आ पाई ...

तो मेरे प्यारे दोस्तों मै हाजिर हूँ एक बार फिर आपके सामने एक नए प्रयोग के साथ .... कभी कभी कुछ बातें कविता से अलग होकर भी कविता ही लगती है ..इसी श्रृंखला में मैंने ये अनूठा प्रयोग करने की कोशिश की है ...इस उम्मीद के साथ की पसंद आने पर आप मेरा हौसला बढ़ाएंगे ..और जो कमी होगी वो भी मुझे बेहिचक बता देंगे ताकि मै और अच्छा लिखने को अग्रसर रहू ....





मेरे प्यारे दोस्तों ....
कभी कभी कुछ बातें भी इतनी खूबसूरत लगती की उनको सहेज कर रखने को जी चाहता है ....
इसी श्रृंखला में कुछ काल्पनिक  लिखा  तो सोचा की आप सबके साथ शेयर कर लूँ ..हो सकता है जैसे इसे पढ़ के मेरे दिल के तार झन झनाये वैसे ही आपके मन का भी कोई तार बजने लगे ये  बस खतो के माध्यम से कुछ बातें कही गयी हैं ... ख़त है प्रेमिका का अपने प्रेमी के नाम ....

फरवरी १८,,, १९९७

मेरी जिंदगी .....

तुम सोच रहे होंगे की ये इतनी पुरानी तारीख़ क्यों डाली है इस ख़त पर ...तो वो इसलिए क्यूकी मेरी जिंदगी आज भी उसी पल में रुकी हुई है ....जब तुम मेरे साथ थे ...आज इतने दिनों के बाद तुम्हारा फोन आया ..यकीन मानो जैसे मै किसी नदी में डूब रही थी और तुम्हारी आवाज ने तिनके का सहारा दे दिया ..और मुझे फिर से जिन्दा होने का एहसास दिया ....जिस पल तुम्हारी आवाज मेरे कानो में पड़ी ..मानो एक और जिंदगी उसी पल जी ली मैंने ..कब शबनमी कतरे आँखों की कोर छोड़ कर मेरे होठो को चूमने लगे कुछ पता नहीं चला ..सब कुछ उस एक पल में हो गया ....तुमसे बात होने के बाद अब क्या कहूँ मेरा क्या हाल है ...मेरे कमरे की वो दीवारें जो आजतक मुझे बदरंग लगती थी आज अचानक वो मुझे रंग-बिरंगी और खूबसूरत लग रही हैं .....मै बोल रही हूँ तो भी लग रहा है की गुनगुना रही हूँ ..खाने - पीने की चीजो का स्वाद बढ़ गया है ..और एकदम से मेरा कुछ मीठा खाने का मन हो आया है ... मेरी डायरी और कलम मुझे प्यारी निगाहों से घूर घूर के देख रही हैं ..की अब तक जो दर्द की स्याही उन पर उड़ेलती आई हूँ मै, शायद आज प्यारा सा कोई नगमा लिख दू उनपर तो उनको भी चैन आ जाये ..ऐसा ही लग रहा है उनके मुझे देखने से !!! ओह ! मेरी जिंदगी तुम नहीं जानते ..मेरी जिंदगी में तुम्हारे होने के क्या मायने हैं ....बस अब कहीं मत जाना ..और जाना तो मेरी जिंदगी लेकर जाना ......

जिंदगी की सारी खुशियाँ तुम्हारे नाम
सिर्फ तुम्हारी

Thursday 16 May 2013

कभी कभी....


कभी कभी तो बातें जैसे बिन मौसम की बरसात
और कभी कभी जैसे धुंआ सा हो जाती हैं
कभी कभी दिल कहता है वो हैं अपने
और बहती हवा कभी कुछ और ही कह जाती है
कभी कभी सूरज की गर्मी भी अच्छी लगती है
रिमझिम फुहारें भी कभी, जज्बात जगा नहीं पाती हैं
कभी कभी बिजली का कड़कना भी,
मन को डरा नहीं पाता है
और कभी चांदनी रात भी, मन मेरा सहमा जाती है
कभी कभी कण कण में ,मुझमें
बस तुम ही दिखाई देते हो
और कभी आँखें मूँद कर भी कोई अक्स नजर नहीं आता है
कभी कभी मन भरम से, डरता रहता है पल पल
और कभी प्यार बन के विश्वास रग रग में मेरी बहता है
तुम हो यहीं हो ....मन मेरा मुझसे कहता है
मन मेरा मुझसे कहता है
----------------------------पारुल'पंखुरी'

Monday 22 April 2013

"धरा दिवस"


आओ मिलकर हम सब बचाएँ
पृथ्वी अपनी प्यारी ,
नहीं तो प्रलय से पहले ही कर लो
विनाश की तैयारी ,
हर घर में लगायें पेड़ पौधे
सींचे स्नेह  से क्यारी ,
तभी सुरक्षित रह पाएगी
हमारी नव्या फुलवारी 
धरा दिवस पर आज एक घंटा  ..
बंद कर दो  बिजली  सारी ..
रहो  प्रकृति माँ की गोद में
तन मन में महकेंगी खुशिया न्यारी ..
बूँद बूँद जल भी है कीमती
व्यर्थ इसे न तुम गंवाओ
खुद समझो जल का महत्व .
और बच्चो  को अपने समझाओ ..
गर बुद्धि  को किया  नहीं तुमने ये नोटिस जारी .
प्यासे मरेंगे पशु ,पक्षी ,बच्चे और  सब नर नारी ..
आओ मिलकर करें संकल्प जन-जन को हमे जगाना है
आज  नहीं हर दिन हर पल हमे "धरा दिवस" मनाना है

--------पारुल'पंखुरी'






Thursday 11 April 2013

दुर्गा वंदना ..मेरी आवाज में



 मित्रो आप सभी को नवरात्र की मंगलमयी शुभकामनायें ..माँ भगवती आप सभी पर सदैव अपना आशीर्वाद और स्नेह बनाये रखे ....आज मै  आप सबके सामने  श्री विनोद  तिवारी जी की लिखी  दुर्गा वंदना जिसे मैंने अपनी आवाज दी है प्रस्तुत कर रही हूँ ...

ऑडियो सुनने  लिए लिंक पर क्लिक  करें फिर वह प्ले का  दबाएँ :-)





 जय जय जय जननी। जय जय जय जननी।

      जय जननी, जय जन्मदायिनी।
      विश्व वन्दिनी लोक पालिनी।
      देवि पार्वती, शक्ति शालिनी।

जय जय जय जननी। जय जय जय जननी।

      परम पूजिता, महापुनीता।
      जय दुर्गा, जगदम्बा माता।
      जन्म मृत्यु भवसागर तरिणी।

जय जय जय जननी। जय जय जय जननी।

      सर्वरक्षिका, अन्नपूर्णा।
      महामानिनी, महामयी मां।
      ज्योतिरूपिणी, पथप्रदर्शिनी।

जय जय जय जननी। जय जय जय जननी।

      सिंहवाहिनी, शस्त्रधारिणी।
      पापभंजिनी, मुक्तिकारिणी।
      महिषासुरमर्दिनी, विजयिनी।

जय जय जय जननी। जय जय जय जननी।
--स्वर ---पारुल 'पंखुरी'

* * *



Wednesday 3 April 2013

प्रीत का रंग ...


कैसे आये मुझको ..
बिन प्रियतम के चैन
आस में उसकी रहते ..
हर पल मेरे नैन ..
धर बंसी अधरों पर अपने ...
आयेंगे मोरे अंगना ...
इसी घडी की बाट जोहते
मोरे दिन और रैन ...
न चहिये मुझे लाल, गुलाबी ...
पीला ,हरा या रंग नारंग ....
मोहे तो भाये बस कान्हा,
और उसका श्यामल रंग ...
ऐसा रंग चढ़ा सांवरिया ..
रंग सारे फिर लगे बदरंग ..

आ जाओ अब प्रियतम प्यारे ..
प्रीत के रंग से रंग दो,अंग- अंग ......

खेलूंगी होली मै तो बस ...
सांवरिया के संग ..
सांवरिया के संग ..
----------------------पारुल'पंखुरी'

Tuesday 26 March 2013

पिया बिना .......कैसी होली



कैसे मनाऊ मै होली पिया तेरे बिना...
ना चढ़ी हाथो में लाली...लगा के भी हिना...
फीके - फीके लगे मुझे रंग और गुलाल...
हर पल तरसे अँखियाँ..रहे तेरा ख्याल...
रंग लाल हो पीला..हरा या नीला..
ना भाये कोई रंग मुझे ..ना ये मौसम रंगीला...
कैसे मनाऊ मै होली पिया तेरे बिना...
तुम साथ होते हो तो रंग मुझे बहुत लुभाते  हैं...
मन में उमंग ..चेहरे पे ख़ुशी ले आते हैं..
अब तुम नहीं हो तो मैंने ये जाना...
वो सब रंग तो तुझे देख के मेरे चेहरे पे आते हैं ...
तेरे देखने से जब चेहरा मेरा..गुलाबी हो जाता है...
वो रंग तेरे साथ का मुझे सबसे ज्यादा भाता है..
अब जो तुम नहीं हो..तो धुंधलका सा है छा रहा...
लाल..हरा गुलाबी..कोई रंग मेरे मन को नहीं लुभा रहा...
रंगीला ये मौसम दिल को और भी तरसा रहा...
के आ जाओ ये विरह का मौसम नहीं सहा जा रहा...
दिल में रंगों का इन्द्रधनुष है नहीं खिला...
कैसे मनाऊ  मै होली पिया तेरे बिना...
कैसे मनाऊ मै..होली...
------------------------------पारुल'पंखुरी'

Saturday 23 March 2013

फागुन गीत मेरी आवाज में ...

मेरे प्यारे दोस्तों ब्लॉग की दुनिया में आये हुए मुझे अभी ज्यादा वक़्त नहीं हुआ ..लेकिन जिस तरह आप सब ने मुझे अपनाया और अपना स्नेह दिया लगता ही नहीं की मै  यहाँ अभी नई  नई  आई हूँ ...मेरी कविताओं और विचारो को आपने अपनी सुन्दर   टिप्पणियों से सजा दिया ..जिससे मेरे ब्लॉग की खूबसूरती और भी बढ़ गई ...मुझे हर रोज कुछ नया करना अच्छा लगता है कुछ क्रिएटिव करने का चाव हमेशा मेरे मन में रहता है ..तो आज फिर मै   आप सबके सामने कुछ अलग लेकर आई हूँ ...आज जिस रचना की मै  बात कर रही हूँ उसका शीर्षक है "कौन रंग फागुन रंगे  ...." ये  मैंने नहीं लिखी है ...इसके कवि  हैं श्री दिनेश शुक्ल जी और ये सुन्दर कविता http://manaskriti.com/kaavyaalaya/ के सुन्दर कविता रुपी मोतियों में से एक मोती है ...मुझे इस कविता को recite करने का मौका दिया श्री विनोद तेवारी  जी  और वाणी मुरारका जी ने .....तो प्रस्तुत है आप सभी के लिए होली के उपलक्ष में ये सुन्दर सलोना फागुन गीत :-) सुन कर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दीजियेगा ..मै  प्रतीक्षा में हूँ ..
                                                            ---आप सबकी प्यारी पारुल'पंखुरी'


कविता का audio  सुनने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक कीजिये फिर वह प्ले का बटन प्रेस कीजिये 

कौन रंग फागुन रंगे...

 कौन रंग फागुन रंगे, रंगता कौन वसंत,
प्रेम रंग फागुन रंगे, प्रीत कुसुंभ वसंत।

रोमरोम केसर घुली, चंदन महके अंग,
कब जाने कब धो गया, फागुन सारे रंग।

रचा महोत्सव पीत का, फागुन खेले फाग,
साँसों में कस्तूरियाँ, बोये मीठी आग।

पलट पलट मौसम तके, भौचक निरखे धूप,
रह रहकर चितवे हवा, ये फागुन के रूप।

मन टेसू टेसू हुआ तन ये हुआ गुलाल
अंखियों, अंखियों बो गया, फागुन कई सवाल।

होठोंहोठों चुप्पियाँ, आँखों, आँखों बात,
गुलमोहर के ख्वाब में, सड़क हँसी कल रात।

अनायास टूटे सभी, संयम के प्रतिबन्ध,
फागुन लिखे कपोल पर, रस से भीदे छंद।

अंखियों से जादू करे, नजरों मारे मूंठ,
गुदना गोदे प्रीत के, बोले सौ सौ झूठ।

पारा, पारस, पद्मिनी, पानी, पीर, पलाश,
प्रंय, प्रकर, पीताभ के, अपने हैं इतिहास।

भूली, बिसरी याद के, कच्चेपक्के रंग,
देर तलक गाते रहे, कुछ फागुन के संग।
- दिनेश शुक्ल
* * *


Friday 22 March 2013

कविता की खोज में ......



लीजिये कविता दिवस आया भी और चला भी गया ...मुझे तो आज ही एक मित्र से पता चला की कल कविता-दिवस था ...कविता दिवस ...पर तो यही एक ख्याल आया की कविता है क्या ..बस इसी उधेड़ बुन में ये रचना बुनी मैंने ..अब आपको कैसी लगती है ये तो आप सब ही बताएँगे न :-) कविता दिवस की आप सभी कवि  जनो को हार्दिक शुभकामनायें :-)

क्या मेरी सोच मेरी कहानी है कविता
या नए भाव..नए शब्द..मीठी सी वाणी है कविता
वो सुबह सवेरे  हवाओ का चलना
और धीरे से मेरे कानो में घुलना
वो पंछियों की चहचहाहट
झुण्ड में पंख  फैलाना
या पके आमो के बगीचे में
कोयल का कुहू कुहू गाना
क्या हवाएं कोई संदेसा हैं लाती
किसे कोयल अपना मधुर संगीत है सुनाती
हजारो जल तरंगे..बजाती है सरिता
हर चीज में मुझे सुनाई देती है कविता
क्या है कविता
प्यार की सेंक  से ज़वा होती है ये
दर्द और पीड़ा शब्दों में जीती है ये
कभी आक्रोश बन के है निकलती
कभी व्यंग बाण से करे प्रहार
कभी सती ये कहलाये कभी कहलाये पतिता
कभी मरहम है लगाती
कभी रुलाती है कविता
मुझे तो अपने आंसुओ में भी सुनाई देती है कविता

------------------------पारुल'पंखुरी

Thursday 21 March 2013

सिलवटें ....










उलझी लट मोरी बारिश में ,
एक सिलवट रस्ते पे पड़ गई...
मोड़ पे वो टकराया मुझसे ,
एक सिलवट चेहरे पे पड़ गई...
नजरो से जब छुआ था उसने ,
एक सिलवट पलकों पे पड़ गई...
हाथ बढ़ाकर कलाई मरोरी ,
एक सिलवट चुनरी में पड़ गई...
हौले से उड़ाई जब उलझी लट ,
एक सिलवट साँसों पे पड़ गई ..
फूलो से किया प्यार इजहार,
एक सिलवट बातो पे पड़ गई..
बजी शेहनाई हुई बिदाई ,
एक सिलवट नातो पे पड़ गई...
मिलन का मौसम महका बदन,
एक सिलवट चादर पे पड़ गई ...
-------------------------------------पारुल'पंखुरी'

Thursday 14 March 2013

टुकड़े टुकड़े मन ...



बहता मन महकती पवन ...
आकांशा तारो को छूने की...
वक़्त ने ली एक अंगडाई ..
ओंधे मुह धरती पे आई ..
मिली तन्हाई.. मिली तन्हाई ..

मन टुकडो को समेटा ..
हिम्मत को फिर से लपेटा ..
मोड़ पर कमबख्त इश्क छुपा था ..
एक टुकड़ा उसने चुरा लिया..
रह गई सिर्फ परछाई ..
मिली तन्हाई.. मिली तन्हाई ..

साँसे अभी चल रही थी ..
गिर गिर के संभल रही थी ..
एक मोड़ पर मिल गए धागे ..
समझ के बढ़ गई मै रेशम..
उलझ के रह गया तन मन ...
मन टुकडो ने दम तोड़ दिया ..
आँख में तबसे नमी सी छाई ..
मिली तन्हाई मिली तन्हाई ..-
-----------------------------पारुल'पंखुरी'

Tuesday 12 March 2013

झांकते लोग...



भांति भांति के होते हैं लोग
कुछ भोले कुछ बडबोले
कुछ शर्मीले कुछ रंगीले
कुछ दौड़ते..भागते..खींचते,
कुछ बंद कमरों के पीछे से झांकते
झांकते हैं अपने ही दिमाग की खिडकियों से
क्यूकी उस घर में न कोई झरोखा है..न खिड़की
दिमाग की खिड़की में अपनी
दूरबीन लगा के.
जुगत भिड़ा के
बताते हैं....फलां...लड़के के साथ ,
नैन लड़ा रही है.... फलां...की लड़की।।

उन्हें बस झांकना है
किसी का भी सम्बन्ध किसी से भी टांकना है
कौन कब आया
कौन कब गया
बहीखाते के हिसाब के जैसे.. रखते हैं ये सब पता
किस्सा न हुआ हाजमे का चूरन हो गया
सुबह दोपहर शाम
नियम से खाते ..औरो को भी खिलाते
हो सड़क कितनी भी साफ़
चलते हैं ये कीचड़ के पानी में पैर छपछपाते।।


अपने घर में बिजली पानी है के नहीं
उसकी बिलकुल नहीं करते परवाह
"उस" के घर की बत्ती कब जली...कब बुझी
इन्ही..ब्रेकिंग न्यूज़ से अपनी बातो को देते रहते हवा...
इन हवाओ से शोले दूर तक बरसते हैं
जाने अनजाने कितने ही दामन ख़ाक हुआ करते हैं।।

अब कौन इन्हें  समझाए
कीचड़ के पानी में चलने में चतुराई कितनी है...
जिस दिन खुद गिरेंगे  गड्ढे में कीचड़ के..
तभी जानेंगे..कीचड़ की गहराई कितनी है।।
----------------पारुल'पंखुरी'

Friday 8 March 2013

मै स्त्री हूँ...


आज महिला दिवस है ...महिला जिससे सृष्टि की शुरुआत हुई जिसके  बिना  सृष्टि चल नहीं सकती ..उसके लिए एक दिन विशेष तौर पर मनाने का क्या औचित्य है . मेरी समझ से परे है ... जिस तरह से जनम से लेकर मृत्यु तक स्त्री के साथ अन्याय हो रहा है आज  भी हो रहा है ..ऐसे समय में एक दिन महिला दिवस के रूप में ???!!!! क्या ये महिलाओं को जगाने के लिए है?? या पुरुषो को बता रहे हैं हम की हाँ मै (स्त्री) भी अभी इस दुनिया का हिस्सा  हूँ ...शायद मेरी बातो से आप में से बहुत लोग सहमत नहीं हो किन्तु ये मेरे अपने विचार हैं ..जो रोज देखती हूँ टीवी में ,समाचार पत्रों में ...अपने आस पास ऐसे में मेरे मन से  बस इसी कविता का जनम हुआ ...




मै स्त्री हूँ...
अदभुत. अदुन्द
...अपरिहार्य...
प्रेम और स्नेह से पल में..

बंधने वाली...

पिता-भाई ..पति-पुत्र..के नियमो में..

चलने वाली..

मै स्त्री हूँ...

मैंने सदैव स्त्री धर्म निभाया है...

मृत शय्या पर पति की...

होम होते स्त्री को ही पाया है...

पुरुष जो कहता है ..वो दाता है...

नारी के बिना उसका  वंश नहीं चल पाता है...

शारीरिक क्षमता की है अगर उसके पास धार..

तो मानसिक क्षमता की है मेरे 
पास तलवार..

मै स्त्री हूँ...

ईश्वर ने मुझे अपनी कल्पनाओं से सजाया है...

सहनशक्ति मेरी कमजोरी नहीं...

त्याग की प्रतिमूर्ति बना ईश ने..

मुझे पृथ्वी पर  उतारा है...


मै स्त्री हूँ..
मै हूँ  ममत्व से भरी आंगनवारि
. ..
नए अंकुर फूटते मुझमे ...

खिलती नव्या फुलवारी...

फिर भी मुझे हेय दृष्टि से देखा जाता..

घिनोनी नजरो से यहाँ वहा..

मेरे शरीर को भेदा जाता..

दाव लगते ही अस्मत को कुचला जाता..

इच्छाओ.. भावनाओं को दिन-रात मसला  जाता..

कभी कोख में मारता ..कभी  जिन्दा कूड़े के ढेर में फेंकता ..

कभी कर देता  सौदा...कभी दहेज़ का दानव मुझे खा जाता..

हर तरफ मेरी सिसकारियो की आवाज है...

कहीं चल रही जिस्मफरो
शी मेरी
 ..कहीं खून की बौछार है..

मै स्त्री हूँ..

सुन ले ओ अधमक !! 
तुझे स्त्री की हाय 
में जलना होगा..
स्त्री के बिना तुझे दुनिया में सड़ना  होगा.. 

पुरुषत्व की इच्छाओ को..

तड़प तड़प के मरना होगा..

मै नेत्र हूँ ...

शिव का तीसरा नेत्र ...

जिस दिन खुला चारो और..

महाप्रलय एवं तांडव होगा..

तांडव होगा...
                   
----पारुल 'पंखुरी '    

pictures credit goes to google     

Thursday 7 March 2013

सिरफिरा फूल ...
















कहीं दूर सुंदरवन में...थी एक मनोहर वृक्षावली ...
इन्द्रधनुषी फूल खिलते  थे..मुस्काती  हर पल्लव और डाली...
अनोखा था एक  वृक्ष  अकेला ..मंजुल से उस कानन में..
बारह-मास में फूल सिरफिरे...खिलते थे बस सावन में...

पुष्प निराले भाग्य पर अपने..इठलाया बड़ा  करते थे....
हँसते थे हर रोज सवेरे..हर शाम शरारत करते थे...
फिर आया एक दिवस तूफां...दरख़्त  को जड़  से था हिलाया...
सिरफिरा पुष्प हो अधमरा ..डाली से नीचे आया...
जाने किस महीन डोरी से... बंधा था वो शाख से ऐसे...
नवजात शिशु बंधा होता है...जन्म समय में मात से जैसे...

निराले उस वृक्ष पर ..लटका अनमना सा वो फूल...
हलकी सी हवा भी डराती...चुभती उसको जैसे शूल...
पल-प्रतिपल सहम  जाता..किस्मत पे अपनी था रोता...
जब कभी भी चलता.. सुगन्धित कोई पवन का झोंका...

शनै:-शनै: वो  हो रहा था निष्प्राण...
न धरती रही उसकी..ना अब तक मिला आसमान..
जाने कब तक उस पुष्प को..यू डर डर के जीना होगा...
नेह-स्पर्श से "कुछ" जिल जाएगा ..या पैरो तले रून्दना होगा....
-----------पारुल'पंखुरी'

Sunday 3 March 2013

गिरधर से पयोधर...



प्यारे दोस्तों होली आने वाली है ..मुझे पसंद भी बहुत है ..रंग गुलाल ..लेकिन होली का नाम आते ही सबसे पहले जो मेरे मन  में आते  है वो है मेरे कृष्णा ....उन्ही की कृपा से मैंने ये भजन उनके लिए लिखा है ...और इसकी धुन बनाकर इसको  गाने का भी प्रयास किया है ...मेरी कोशिश आपको कैसी लगी ये तो आप ही मुझे बताएँगे ...भजन का ऑडियो लिंक संलग्न है..सुनने के लिए प्ले के बटन पर क्लिक कीजिये









कान्हा तू गिरधर से पयोधर आज बन जा रे ...
बंसी मधुर बजा के अपनी जादू कोई कर जा रे ...
कान्हा तू गिरधर से पयोधर आज बन जा रे ...

राधा का मन विरह से आकुल ..कब से देखे बाट रे ..
सावन सूखा बीते कान्हा ..तू आया ना बरसात रे ...
कान्हा तू गिरधर से पयोधर आज बन जा रे ...


मोरमुकुट किशना तुम कारे ...श्याम रंग के बादल सारे ...
ले बादल का रूप कन्हैया .. झम -झम बरसो आज रे ....
कान्हा तू गिरधर से पयोधर आज बन जा रे ...

ग्वाल बाल गोपी हैं पुकारें ...कब डारोगे प्रीत फुहारें ..
जलती गैया जलते उपवन ...हर लो अब ये त्रास रे ...
कान्हा तू गिरधर से पयोधर आज बन जा रे ...
कान्हा तू गिरधर से पयोधर आज बन जा रे ...

पयोधर---बादल 

--------------पारुल'पंखुरी '















































Tuesday 26 February 2013

उम्मीदें ....













काश..उम्मीदें  रखने को कोई बक्सा होता
तो सारी उम्मीदें  मै उसमे बंद कर देती…
चुन चुन के  उम्मीदे  सहेजती उस बक्से में..
जिंदगी ऐसे ही जी लेती…यू  ही सस्ते में…
लोग कहते हैं के उम्मीद पे दुनिया कायम है..
वही उम्मीद गर पल पल टीस दे जिंदगी को…
तो लगती ये बातें दर्जे की दोयम हैं…
मानती हू उम्मीद  बिना जिंदगी चल नहीं सकती…
मार देने की बात “उम्मीद" को मै कर नहीं सकती….
इसलिए सोचती हू उनको क़ैद  कर दू कहीं…
जहा से उनकी सदाए, दिल को सुनाई दे ना कभी…
हर बार ये फैसला दिल को सुनाया मैंने…
तू उम्मीद ना कर ए दिल ,प्यार से भी उसको समझाया मैंने….
फ़िर  भी नासमझ उम्मीद कर गया…
अपनी झोली में क्या कांटे कम थे….
जो दामन भी दर्द से भर लिया…
तेरी हर इक उम्मीद से मेरा दर्द बढ़ रहा है…
ए दिल, वो देख मेरा दर्द पन्नो पे उभर रहा है…..
वो देख…..

------पारुल'पंखुरी'

Sunday 24 February 2013

खट्टे सवाल मीठे जवाब ....


दोस्तों प्यार से प्यारा कोई एहसास नहीं होता और जब प्यार में दोस्ती भी हो तो क्या कहने फिर हर चीज आसान हो जाती है प्रेमी प्रेमिका एक दुसरे से जो चाहे कहते हैं जो चाहे पूछते हैं ऐसी ही एक प्रेमिका अपने प्रेमी से कुछ खट्टे सवाल पूछती है और कहती है की जैसे जिस सुर में मै सवाल पूछु उसी सुर में मुझे जवाब चाहिए नहीं तो मै रूठ जाउंगी अब वो क्या पूछती है और क्या जवाब मिलते हैं वो आप खुद ही पढ़ लीजिये .....

क्यों चाँद मुझे भाता है,
क्यों वो रोज नहीं आता है ??

ये गजब की बात है चाँद को चाँद ही भाता है,
जब चाँद छुप के तुम्हे देखता है, तब नज़र नहीं आता है।।


क्यों सागर नीला होता है
क्यों बादल इतना रोता है?
नीली आँखों से निकला सो सागर नीला होता है,
जब प्यार पे लगता है पहरा, तो बादल इतना रोता है।।







क्यों सपने मुझे लुभाते हैं
क्यों फूल इतना शर्माते हैं??

बिछुडे प्रेमी सपने में मिलते है, सो सपने बहुत लुभाते हैं,
देखके फूलों सा कोमल चेहरा , फूल भी शरमाते हैं।।







क्यों झरना इतना चंचल है
क्यों कल कल कल कल बहता है??

झरना तेरा दीवाना है सो वो भी चंचल होता है,
देख के तुझको झरना भी कल कल आहें भरता है।।







क्यों सूरज अकड दिखाता  है
क्यों तारो को दूर भगाता है ??

दिलजला प्रेमी है सूरज सो अकड़ा अकड़ा रहता है,
धरती से मिलने आता है सो तारो को दूर भगाता है।।







सबकुछ मन को भाता है
अनायास क्या हो जाता है
क्यूँ मन उदास हो जाता है
क्यूँ आँखे झर झर बहती है ??

जब याद किसी की आती है,
ऐसा अक्सर हो जाता है,
हँसते हँसते आँखों से यादो का झरना बहता है,
जब दिल किसी का रोता है तब आंखें झर झर बहती हैं...



---------------------------------पारुल'पंखुरी'
-----------नीरज कुमार
ये रचना मेरे और मेरे कवि  मित्र नीरज कुमार "नीर" की कुछ अनोखा करने की लगन  में की गई एक  छोटी सी कोशिश है ..आशा है आप सबको यह पसंद आएगी ..अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे।।। मेरे मित्र का भी एक ब्लॉग है उस पर भी एक बार अवश्य पधारें ..लिंक यहाँ दे रही हूँ ...

Tuesday 19 February 2013

अधूरा इश्क .....














एहसास इश्क का ये पूरा है ना आधा है ..

ना जाने उस शख्स से ये कैसा नाता है ..

है दिल्लगी ये इश्क या दिल की लगी यारो ...

चोट खाके भी दिल नगमे गुनगुनाता है ...

भरे पैमाने भरी आँखें पहचान आशिक की ...

बेमुर्रवत इश्क में फ़कत आंसू कमाता है....

मिला तन्हाई का साथ दिन रात का ऐसा ...

मुझको सताता है कभी मुझको मनाता है ....

ना ख़ुशी का एहसास ना बरसती कभी आँखें...

ना रोने का वादा, दिल हर पल निभाता है ...

बंजर आँखें उखड़ी सांसें है प्यार का सिला ...

मै सब कुछ भूल जाती हूँ जब उसका नाम आता है ...

----------------पारुल 'पंखुरी'

Friday 15 February 2013

ख्याल ...


दोस्तों ....आज मै अपनी लिखी कविता 'ख्याल ' का विडियो आप सब के समक्ष प्रस्तुत कर रही हु ..इस में  मैंने कविता को अपनी आवाज और अपने पसंद के चित्रों से सजाया है ...आप सब इस पर प्रतिक्रिया अवश्य दे इससे मुझे और अच्छा करने का हौसला मिलेगा ....धन्यवाद




फिर वो ही सौंधी खुशबु
वो ही मीठा मीठा सा दर्द
वो ही दिन वो ही महीना
गुनगुनी सी धूप ..और रातें सर्द
कौन रंगों से आज आसमान सजा गया
प्यार का रंग चारो और छा  गया
आज फिर उसका ख्याल आ गया
हलकी लाल  आँखों से उसका
वो कनखियों से देखना
चुप रहके मुस्कुराना
बिन कहे ही सब समझना
कभी कुछ कहा नहीं उसने
जाने कैसे दिल उसकी गिरफ्त में आ गया
सादगी उसकी ..भोलापन .. दिल को भा गया
आज फिर उसका  ख्याल आ गया
ना उसने कुछ कहा कभी
न मै  कह  पाई
जानता वो भी था ..समझती मै  भी थी
फिर भी होंठो तक कभी ये बात नहीं आई
आज तक जो नहीं कहा वो आज मै   कहना चाहती हूँ
ऐ महकी हवाओ  ...
मेरा ये संदेसा उन तक पंहुचा देना
और कहना उनसे
मुझे उनसे
मोहब्बत है ...
मोहब्बत है ...
मोहब्बत है ....
----------------पारुल'पंखुरी'



Wednesday 13 February 2013

अगर ....







मन ...

असीम वेदना की गागर ...

आँखें ....

अपलक शून्य निहारती ....

तन ...

हाड मांस का पुतला ....

दिमाग ....

नसों का जमावड़ा ....

होंठ ....

निःशब्द बेअसर ...

कान ...

गूंजते शब्दों के भंवर ...

अच्छा होता ...

अगर ....

दिल भी ..

एक यन्त्र  भर होता ....

जिसमे ..

ना कुछ पाने की लालसा होती ....

ना कुछ खोने का डर ....


-------------------------------पारुल'पंखुरी

Sunday 10 February 2013

सपना ...






नींदों में मेरी ...

जब खूबसूरत ..

कोई सपना आता है ...

जगा कर मुझे ...

उदासी की ओर ...

वो ले जाता है ..

एहसास होता है ...

तब तन्हाई का ...

अपनी बहुत ...

अश्को की भाषा से ...

तब, मन ...

मुझको समझाता है ...

--------------------------पारुल 'पंखुरी '

Friday 8 February 2013

तन्हाई ....





कोई कितना भी साथ रहे एक न एक दिन चला ही जाता है ..तब फिर से ना चाहते हुए भी तन्हाई अपनी बाहों में घेर लेती है...पहले पहल गुस्सा आता था चिढ होती थी मगर अब तन्हाई सहेली बन गई है ...इसलिए अक्सर लोगो से कह देती हू ...

अकेला छोड़ दो मुझको ..
के तन्हाई रास आ गई है ...
रोशन महफिले हो या ..
सूनी रात का सन्नाटा ..
बना के बाहों का घेरा ..
वो आसपास आ गई है ...
कभी अश्को से खेलती ..
कभी निंदिया को ढूंढ़ती ..
वो बन के मेरी हमसफ़र ..
मेरे एहसास पा गई है ...
जाती नहीं कभी कहीं ..
वो मुझको छोड़कर ...
बन के मेरी परछाई ....
वो मेरे साथ आ गई है ....
सिसकियों को बांधती ..
कभी मुझको संभालती ...
धीरे -धीरे तन्हाई अब ..
मेरे भी मन को भा गई है ..
अकेला छोड़ दो मुझको ..
के तन्हाई रास आ गई है ...
-----------पारुल'पंखुरी'

Thursday 7 February 2013

चाहतें ....





तुम्हारी सुबह हमारी रातें होंगी ......

अब तो ख्वाबो में ही अपनी मुलाकातें होंगी .....



तुम बिन बोझिल मेरी सांसें होंगी ...

तेरी यादें ही अब प्यार की सौगातें होंगी ....



अब होगा जीना कुछ इस तरह की .....

आँखों में आंसू लबो पे मुस्कुराहटें होंगी .....



शायद मै रहू न रहू तेरे आने तक ....

महकी हवाओ में घुली मेरी सांसें होंगी ....



मोहब्बत को मंजिल न मिले अब ....

सफर में ही ताजमहल हमारी चाहतें होंगी .....



------------------पारुल 'पंखुरी'

Monday 4 February 2013

गुलाबी ठण्ड ......अदरक वाली चाय








मौसम भी जैसे मुझको सताना चाहता है ...आज फिर करवट बदल ली ....सुबह से इतनी जोर से बिजली कड़क रही है ....आज फिर ठंडक महसूस हुई .....फिर से वही अदरक वाली चाय ..लेकर बैठी तो सारी गुलाबी यादें बारिश में चलचित्र बन के घूमती नजर आई ये बारिश हमेशा मेरा साथ देती है ...कभी आंसुओ को छुपाने में कभी यादो को फिर से याद दिलाने में ......


गुलाबी ठण्ड अदरक वाली चाय...उसकी यादें...और पुराने गाने..

पहला प्यार..कभी इनकार..कभी इकरार...

मन ढूंढे तन्हाई...खुद को दिल की ...

धड़कन सुनाने...


वो उसका चक्कर काटना...देर रात तक..

जाना छत पे मेरा...देखने उसको...

चाँद के बहाने...


वो फ़ोन की घंटी..मेरा छत से दौड़ना...

उठाने से पहले ही फ़ोन मेरी...

दबी-दबी मुस्काने...


वो कॉलेज के दिन...साथ साथ जाना...

उंगलियों से उंगलियों के.....

रास्ते में टकराने...


वो उसका बुलाना ..फिर टाइम से ना आना...

मेरा घंटो रूठ जाना...

और उसके मनाने ...


वो प्यार की शराब..वो नजरो के पैमाने..

एक दूजे के प्यार में...

हुए हम दीवाने...


फिर वही गुलाबी ठण्ड..अदरक वाली चाय..

पुराने गाने...

बस एक नहीं है तो "वो" .

तो क्या हुआ उसकी यादें तो हैं...

अब भी गुलाबी हो जाता है चेहरा मेरा ..

जब याद आते उसके अशआर पुराने..

मगर ये एहसास ..

ये यादो की कंपकंपी...

जो प्यार करे वही जाने...

वही जाने...

---------------- 'पंखुरी'

Saturday 2 February 2013

उद्घाटन पर विशेष ....















आज के लिए विशेष .....
1--सुस्वागतम
2--जलपान एवं भोज
3-मिठास
4-दिल की बातें 

सुस्वागतम ..





ॐ गणेशाय नमो ....

छन्द पकैया छन्द पकैया छंद की अलग है शान ...
'पंखुरी' के आँगन में आज आये खूब मेहमान .....

स्वागत रसम ....

भावनाओं के हैं रोली चावल ..
मुस्कराहट का बनाया है पुष्प हार ...
आप सभी अतिथि जन को ..
पारुल पंखुरी का प्रेम भरा नमस्कार ...

दिल से अपने दीजिये आज मुझे आसीस ...
कर बद्ध खड़ी हूँ मै झुकाए अपना सीस ...

बांटू खुशिया कर दूँ ..अँधेरे जीवन में उजियारा ...
ऐसा आसीस दीजिये हो जाए जीवन न्यारा ...

मुंह मीठा कीजिये ....

सबसे पहले आपका मुंह मीठा कराती हूँ ...
बातो के रसगुल्ले आप सबको खिलाती हूँ ...
रसगुल्ले की थाली अपने हाथो में सजाती हूँ ..
साथ ही आपको अपने "chief guest " से मिलवाती हूँ ..

मुख्य अतिथि परिचय ...
उपलब्धियां इनकी गिनाऊ तो ..
हो जायेगी सुबह से शाम ....
फिजिक्स के हैं महान ये ज्ञाता ...
दिल से करते हैं हर काम ...
पेशे से हैं वैज्ञानिक परन्तु ..
कवि इनके ह्रदय में बसता
काव्यालय के एडमिन के रूप में ..
इनका नाम बहुत ही जंचता ...
कविता जैसे इनके रग रग में है बसती ..
फिजिक्स में भी इन्हें तो कविता ही है दिखती
रहते हैं विदेश में पर करते हैं देश से बहुत प्यार ...
काव्यालय में इनसे सब पाते हैं लाड दुलार ...
मध्यम को उत्तम ..उत्तम को अति उत्तम ...
करने की ये हैं राह दिखलाते ....
गलतियों पर भी ये बड़े प्यार से हैं समझाते ...
वैज्ञानिक,प्रतिभाशाली,कवि ,गुरु ...
उससे भी अच्छे हैं ये इंसान ....
इन शुभ हाथो से करने प्रारंभ ...
निवेदन करके इन्हें बनाया है "मुख्य मेहमान "
बहुमुखी प्रतिभा के धनी जिनका किया न जा सकता बखान
ऐसे हैं हमारे मुख्य अतिथि "श्री विनोद तिवारी " है जिनका नाम
विनती है आपसे कविताओं पे मेरी ..
सदा बनाये रखियेगा यूँ ही अपना प्यार ...
और अपनी बातो का जादू बिखेरने ...
ब्लॉग पर आते रहिएगा बारम्बार ...

ब्लॉग पर आने और विशेष आतिथ्य स्वीकार करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार विनोद तिवारी सर :-) अपना आशीर्वाद सदैव मुझ पर बनाये रखियेगा :-)

जलपान एवं भोज ...







हरे कृष्णा 

अरे अरे इधर आइये जरा
ध्यान लगाकर सुनो सारे मेहमान
सत्कार करने को आपका
मैंने बनाये हैं छप्पन पकवान
पूरी कचोडी सब्जियां रायता ...
मीठे में है बादाम का हलवा
अभी देखते जाइये और क्या क्या है ..
हमारी बातो का जलवा ...

आज मैंने अपने कुछ कवि मित्र भी हैं बुलाये ...
है फरमाइश कुछ ऐसी की कविता करके ही व्यंजन खिलाये ...
तो चलिए उनको काव्य के गोलगप्पे खिलाती हूँ
और कुछ कवि मित्रो को आपसे मिलवाती हूँ ...

कविता के नित जलाते हैं ये दीप ..
नाम है इनका शुक्ला प्रदीप ....
कल्पना को ये अपनी प्रेमिका हैं बताते ...
काव्य के सभी व्यंजन इन्हें सबसे ज्यादा भाते ..
कभी कल्पना सो जाती ..
कभी लेने नहीं देती इनको चैन ...
कल्पना से करते छेड़छाड़ मै ..
बन गई इनकी कविताओं की fan
प्रदीप जी ब्लॉग पर आने का बहुत शुक्रिया आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है अपना साथ ऐसे ही बनाये रखियेगा :-)


नेकदिल साफ़ मासूम और बहुत ही खास
पकड़ते ही नहीं कभी तारीफों के लिबास
इनके बिना रहता है काव्यालय उदास
राजू पटेल भरते हैं सब में आत्मविश्वास

राजू ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आपने हमेशा प्रोत्साहन दिया आप बहुत अलग हैं मुझे भी टाइम लगा समझने में मगर बहुत ही साफदिल है आप और हाँ मासूम भी :-)


मेरी और शिखा की दोस्ती है
अलबेली मस्तानी सुहानी
कभी वो मुझे कहे शैतान की खाला ..
कभी मै कहूं उन्हें शैतान की नानी ..
बातो में इनका नहीं कोई सानी
कविताओ में भी हैं जबरदस्त
ये बात सबने है मानी :-)

शिखा thank u ब्लॉग पर आने और हमेशा एक अनजाना अनदेखा मगर हर वक़्त सपोर्ट करने के लिए :-)

शांत स्वभाव इनका धरे बहुत हैं धीर
नाम और कविता दोनों से बहे नीर
सुन्दर कवितायें लिखते जो मन को लुभाती हैं
हर तस्वीर हर बात पर इनके मन से
कविता बह बह जाती है ...
जुगलबंदी में साथ इनके मैंने भी लिखी हैं कविता
नीरज जब कविता कहते बहती जैसे सरिता ...

नीरज बहुत शुक्रिया ब्लॉग पर आने के लिए और हर संभव सहायता के लिए ...तुम्हारे जैसा मित्र पाकर मै खुश हु :-)


निर्मल मन शुद्ध विचार
कृष्णा भक्ति करते ये अपार
छोटे बड़े सबसे करते ये प्यार
हार जीत से नहीं कोई इन्हें सरोकार
कविता में भी इनकी कृष्णा है बसते
गौरव पर ईश्वर की अनुकम्पा अपरम्पार

गौरव ब्लॉग पर आने का शुक्रिया अपना स्नेह हम पर यूँ ही बनाये रखना हरे कृष्णा :-)

---------सस्नेह पारुल'पंखुरी'

मिठास ....





शायरी में इनका नहीं कोई जवाब
गाते भी हैं एकदम लाजवाब
स्टाइल से अपने लूटे किसी का भी चैन
fb पर ही इनके हजारो हैं fan
बना रहे निरंतर ये नए आयाम
चंद्रशेखर वर्मा   है इनका नाम
बहुत शुक्रिया सर आपने ही मुझे सबसे पहले कविता लिखने के लिए प्रोत्साहित किया आप मेरे सबसे पहले गुरु और मार्गदर्शक हैं अपना आशीर्वाद ऐसे ही बनाये रखें :-)

प्यारी सूरत चंचल मन ....
कविता सी इठलाती .......
कविता इनकी ऐसे खिलती ....
ज्यू कली खिले इतराती ...
मेरे मन को कविता इनकी ..
भीतर तक छू   जाती ..
अनुलता दी जाने क्यों आप ...
मन को बहुत हैं भाती ..

अनुलता दी ब्लॉग बनाने के लिए आपने ही प्रोत्साहित किया उसके लिए आपका बहुत धन्यवाद अब मेरा मार्गदर्शन करती रहिएगा और वक़्त निकाल कर ब्लॉग पर आया कीजियेगा :-)


कभी फूल सी कोमल कभी कांटो की चुभन
जैसे मन चाहे चला देती ये कलम
कभी छोड़ देती फवार्रा हंसी का
अक्षर अक्षर में इनके सुनाई देती है कविता
न मुरझाई न बासी न लगे कभी मैली
सबसे अलग है हमारी "शैली " की शैली

शैली दी ब्लॉग पर आने का बहुत शुक्रिया और कामना कीजिये की मै भी आपकी तरह अच्छी कवितायें लिख सकू :-)



कविताओं में इनकी है अलग एहसास
आ गई थी मुझे पहली बार में वो रास
कभी सिखाती देश प्रेम देती कभी जीवन को आस
दिल और नाम दोनों में इनके बसा है "आकाश"

आकाश भाई सा स्नेह देने और ब्लॉग पर आने का बहुत बहुत धन्यवाद :-) अपनी कवितायेँ हमेशा सुनाते रहना


बातो में चंचलता मगर कवितायें हैं उदास
कविताओं का स्तर इनका है बहुत खास
"प्रीती बाजपाई " की प्रीत सदा रहे मेरे पास
सफलता मिलेगी इन्हें ऐसा मेरा है विशवास

प्रीती इतनी प्यारी सी दोस्ती के लिए बहुत सारा  प्यार ...ब्लॉग पर आती रहना

आवाज में इनकी कशिश  है गजब ..
केवल मै  ही नहीं फ़िदा हुए सब
"सुदीप" का  अंदाज है इतना खास
कविता को जैसे मिल जाए सांस

"सुदीप"  ब्लॉग पर आने का शुक्रिया ..अब आते रहिएगा ..

बात बात पे उडल  जाते इनके जज्बात ...
कविता ही लगती मुझे इनकी हर बात ...
दिल के साफ़ ...स्पष्टवादी जुबान ..
नाम है इनका अनुराग त्रिवेदी "एहसास"

अनुराग जी ब्लॉग पर आने का बहुत बहुत शुक्रिया ...मनोबल बढ़ाते रहिएगा और आते रहिएगा

-----सस्नेह पारुल'पंखुरी'





दिल की बातें ...





दिल की बातें ...

मेरे प्यारे ग्रुप "लाइफ इस ब्यूटीफुल" के सभी सदस्यों को पारुल पंखुरी का दिल से अभिनन्दन और धन्यवाद ......आप सभी मेरे ब्लॉग पर आये इसके लिए मै आपकी शुक्रगुजार हूँ ....इस ग्रुप ने ही मुझे अपनी काबिलियत को पहचानने का मौका दिया ...मेरे सभी मित्रो सचिन गुप्ता ,सचिन शर्मा ,मृदुला शुक्ला,समीर वत्स ,ऋतुराज,विष्णु,विपिन,आधार,अखिलेश सर ,दिव्या,नमिता,मेघा, नेहा ,ममता ,tatty ,सौमि ,आदित्य ,ललित शिखा ,शैली,रचना ,स्वाति ,विकास चोपड़ा ,विकास जैन और जितने भी नाम रह गए हैं वो सब ,इन सभी ने हर तरह से मुझे सपोर्ट किया है ....आज मै जो हूँ कहीं न कहीं इन सभी का योगदान है उसमे आप सब का दिल से धन्यवाद ...हमेशा हँसते मुस्कुराते रहिये :-)




मै आज धन्यवाद करना चाहूंगी अपने परिवार और अपने सभी मित्रो का ...विशेषतौर पर अपनी मम्मी "आशा मित्तल" का और अपने पापा "श्री नरेन्द्र मित्तल " का उन्होंने अपने बच्चो को इस काबिल बनाया ...मुझमें वो विशवास पैदा किया ..... की मै हर काम को अपना बेस्ट दे सकू ...अपने सभी भाई बहनों का अपने सभी ससुराल वालो का अपने पतिदेव का ..मेरी कविता की शुरुआत का बहुत बड़ा श्रेय उन्हें ही जाता है ....और मेरी सबसे अच्छी प्यारी दोस्त नीरू का जिसने हर वक़्त हर कदम पर मेरा साथ दिया ....और अपने बेटे स्पर्श का i love you बेटा :-)




उन सभी लोगो का भी धन्यवाद जो किसी न किसी रूप में मेरे जीवन में आये ...और कुछ न कुछ सिखा कर ही गए ...




अंत में ..नहीं अंत नहीं ईश्वर तो हर पल साथ है शुरू से अब तक ...मै कोटि कोटि धन्यवाद करती हु कृष्णा का जिन्होंने मुझे प्रेम करना सिखाया ...प्रेम की अनुभूति दी ...उसे अभिव्यक्त करने के लिए बुद्धी दी और महसूस करने के लिए दिल दिया मुझे अच्छे रास्ते पर चलना सिखाया ...आप हमेशा मेरे साथ रहे ...आगे भी रहिएगा




आप सभी का धन्यवाद कृपया समय निकल कर ब्लॉग पर आया कीजियेगा और मेरा मार्गदर्शन करते रहिएगा




----सस्नेह पारुल 'पंखुरी'
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