पथ पे जीवन-पगडण्डी के
पल पल पीड़ा के शूल चुभे
दर्द अब बन गया साथी
राह में फूल मिले.. ना मिले
दिवस बना महीना साल
इन्तजार अनिश्चितकाल
ख़ामोशी अब आदत बन गई
स्याह होठ हिले... ना हिले
मन-क्यारी के सुन्दर फूल
मुरझा गए सब धीरे-धीरे
उजड़ी अब इस बगिया में
कोमल कलियाँ खिले.. ना खिले
जख्म हो गया.. है पुराना
जिंदगी बन गई अफसाना
घाव अब हो गए ढीठ
मरहम कोई मले... ना मले
जीवन है अंधी सुरंग
तनहा ही आगे चलना है
अब चाह किसे ..परवाह किसे
संग कोई चले... ना चले
---------------------------------पारुल'पंखुरी'
बहुत खूब, शुभकामनाये
ReplyDeleteवाह !!! बहुत खूब,सुंदर लाजबाब प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteRECENT POST : अपनी पहचान
बढ़िया है आदरणीया -
ReplyDeleteशुभकामनायें-
सुन्दर... बहुत बढ़िया
ReplyDeleteजीवन तो वैसे भी अकेले ही जीना होता है ... साथ कुछ पल का ही होता है ...
ReplyDeleteभाव मय प्रस्तुति ....
badhiya.. sundar aur satik rachna...
ReplyDeleteKabira kadha bazar mai sabki mange khair,
na kahu se dosti na kahu se bair.... :) :) ud ja hans akela ....
bahut sundar aur sarthak rachna.. do dhoe yaad aa gaye
ReplyDelete" kabira khda bazar mai sabki mange khair,
na kahu se dosti na kahu se bair "
" ek dal do panchi re baithe kaun guru kaun chela,
guru ki guru bharega chela ki karni chela re sadhu bhai ud ja hans akela "...
वाह.. बहुत खुबसूरत दिल से निकली हुई कविता...
ReplyDeletebahut hi sundar likha Parul ji.... badhai
ReplyDeletebahut hi sundar likha hai Parul Ji aapne ... badhai
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (22.07.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी. कृपया पधारें .
ReplyDeleteसंग चले न चले …. तुझको चलना ही होगा !
ReplyDelete.........बहुत सुंदर !
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग को पढ़ा मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है
राज चौहान
http://rajkumarchuhan.blogspot.in
sunder prastuti
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