कहीं दूर सुंदरवन में...थी एक मनोहर वृक्षावली ...
इन्द्रधनुषी फूल खिलते थे..मुस्काती हर पल्लव और डाली...
अनोखा था एक वृक्ष अकेला ..मंजुल से उस कानन में..
बारह-मास में फूल सिरफिरे...खिलते थे बस सावन में...
पुष्प निराले भाग्य पर अपने..इठलाया बड़ा करते थे....
हँसते थे हर रोज सवेरे..हर शाम शरारत करते थे...
फिर आया एक दिवस तूफां...दरख़्त को जड़ से था हिलाया...
सिरफिरा पुष्प हो अधमरा ..डाली से नीचे आया...
जाने किस महीन डोरी से... बंधा था वो शाख से ऐसे...
नवजात शिशु बंधा होता है...जन्म समय में मात से जैसे...
निराले उस वृक्ष पर ..लटका अनमना सा वो फूल...
हलकी सी हवा भी डराती...चुभती उसको जैसे शूल...
पल-प्रतिपल सहम जाता..किस्मत पे अपनी था रोता...
जब कभी भी चलता.. सुगन्धित कोई पवन का झोंका...
शनै:-शनै: वो हो रहा था निष्प्राण...
न धरती रही उसकी..ना अब तक मिला आसमान..
जाने कब तक उस पुष्प को..यू डर डर के जीना होगा...
नेह-स्पर्श से "कुछ" जिल जाएगा ..या पैरो तले रून्दना होगा....
-----------पारुल'पंखुरी'
बहुत सुंदर और मार्मिक ...परन्तु संदेश देती कि कल क्या होगा कोई ना जाने ...सो सबसे प्रेम करो और जियो जी भरकर ....
ReplyDeleteउस फूल की तरह हमारा जीवन भी अनिश्चित है।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया पंखुरी जी।
सादर
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यह सब चलता रहेगा.....
बहुत सुदर भाव -सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeletelatest postअहम् का गुलाम (भाग एक )
latest post होली
waah...bahut khoobsurati se aapne jeewan ki sachhai bayan ki hai...apni jadon se kat.te hue aisa hi mahsoos hota hai..bahut sundar aur marmik chtran.
ReplyDeleteआपकी सर्वोत्कृष्ट रचना, मुझे बहुत पसंद है. सुन्दर शब्द चयन, अच्छे भाव, वाह क्या कहने .
ReplyDeleteफूल तो फूल ही है, एक दिन सबको जाना ही होगा,,,
ReplyDeleteRecent post: रंग गुलाल है यारो,
फूल सा जीवन हमारा भी हो , जब तक जीवन हो बस खुशबू बिखरती रहे और लोग हमें दूर से ही महक से पहचान लें ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पंक्तियाँ ...और भाव ....।
Waah ...Bahut Sunder
ReplyDeleteवाह ... भावमय करती प्रस्तुति
ReplyDeletebarah maas me phool sirfire khilte the bs sawan me................. bahut sunder .......... sampoorn panktiyan pusp ki pankhuri ki tarah sji hui h....
ReplyDeleteसुन्दर शब्दों के साथ सुन्दर रचना प्रस्तुत की है आपने। धन्यवाद :)
ReplyDeleteनये लेख :- समाचार : दो सौ साल पुरानी किताब और मनहूस आईना।
एक नया ब्लॉग एग्रीगेटर (संकलक) : ब्लॉगवार्ता।
shukriya tushar :-)
ReplyDeleteAap sabhi ka blog par aane evam rachna ko saraahne ke liye dhanyavaad :-)
ReplyDeleteमार्मिक ... येही तो जीवन भी है ... उसी पुष्प की तरह ...
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