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Thursday 19 February 2015

मै २०१४ हूँ



भोपाल के दैनिक लोकजंग अखबार में २ जनवरी २०१५ को प्रकाशित मेरी रचना :








अतीत के पन्नों को फिर से दोहराने आया हूँ

मैं 2014 हूँ

अपनी व्यथा सुनाने आया हूँ

बदलेगा दिन और तारीख़ फिर साल बदल ये जाएगा

मेरे मन के ताजा..जख्मों पर मरहम कौन लगाएगा

कुछ देर है अभी 2015 के आने में

देर जरा न लगी नदिया को बच्चों को बहा ले जाने में

बांटे कौन माँ बाप का दर्द इस बेदर्द जमाने में

यहां होंगे मसरूफ़ सभी नए साल का जश्न मनाने में

होठों पर आई न हँसी जिद पर ऐसी रही अड़ी

इतने में कश्मीर में बाढ़ बनकर प्रलय टूट पड़ी

कितने सुनसान घरों में चीखें अब भी सुनाई देती हैं

सुन सुन कर आँखों से मेरे रक्त की धारा बहती है

सीमा पर भी कितनी गोली खाई रोज़ जवानोँ ने

यहाँ होंगे मसरूफ़ सभी नए साल का जश्न मनाने में

कैसी धरती कैसा मजहब क्या दुनिया का हाल हुआ

जाते जाते आँखों ने देखा असम का रंग भी लाल हुआ

कराह रहा अब मेरा मन इतने दर्द सुनाने में

'लील गया 2014' इल्जाम लगेगा मुझ पर जमाने में

कौन सुनेगा मेरा दर्द यहां गाने और बजाने में

यहाँ होंगे मसरूफ़ सभी नए साल का जश्न मनाने में

~~~~पारुल'पंखुरी'
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