रात हो जाती है जब घनी स्याह
तूफ़ान समुन्दर में उठते हैं अथाह
उस पहर जब
जिन्दा भी मुर्दों की श्रेणी में आते हैं
मरहम से सपने नींद सजाते हैं
महसूस होता है एक साया
जिस्म पर हाथ फेरता
चूड़ियाँ तब भी टूटती हैं
दर्द की वो भी पराकाष्ठा है
मगर चीख मेरे जिस्म से
बाहर नही निकलती
क्योंकि -
उसके पास "सर्टिफिकेट" है
--------------पारुल 'पंखुरी'
चित्र- साभार गूगल से
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...!
ReplyDeleteनवरात्रि की शुभकामनाएँ ...!
RECENT POST : अपनी राम कहानी में.
कम शब्दों में गहरी बात कह डाली,
ReplyDeleteपीड़ादायक सत्य....
भावपूर्ण रचना |
ReplyDeleteमेरी नई रचना :- मेरी चाहत
वाह बहुत सुंदर शब्द चित्र
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
आग्रह है---
पीड़ाओं का आग्रह---
मार्मिक ओर संवेदनशील ... पर क्या सार्टिफिकेट गहरे दर्द का साधन है ... मन को छलनी करना क्या कागज़ पाने समान है ...
ReplyDeletebahut sunder
ReplyDeleteअत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण पर कडवी सच्चाई।
ReplyDeleteबेहद मर्मस्पर्शी !
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