भोग का प्याला
पैर की जूती
कपडा फटा पुराना
बिना कुण्डी वाले कमरे में बैठी वैश्या
चलती बस में भेडियो से जूझती आवारा
कूड़े के ढेर पे पड़ा अधनुचा जिस्म
धुएं निकालता फफोलो से भरा चेहरा
लपटों में लिपटा अधजला बदन
खून में लथपथ सिसकती आवाज
कुछ भी समझ लो
बस ...
औरत को इंसान समझने की भूल मत करना
-------------------------पारुल'पंखुरी'
(आखिरी पंक्ति औरतो को संबोधित करते हुए लिखी गयी है )
दिल का दर्द शब्दों में उतर आया है.... बहुत खूब लिखा है। लेकिन वासतविकता इससे भी कहीं भयानक है...
ReplyDeletebahut bhavnatmak kintu vastvikta
ReplyDeleteसदियों की कहानी चंद शब्दों में .....बहुत ही मार्मिक
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति,आप को गणेश चतुर्थी पर मेरी हार्दिक शुभकामनायें ,श्री गणेश भगवान से मेरी प्रार्थना है कि वे आप के सम्पुर्ण दु;खों का नाश करें,और अपनी कृपा सदा आप पर बनाये रहें...
ReplyDeleteमार्मिक ... कब तक ऐसा होता रहेगा ... चीत्कार को कौन सुनेगा ...
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