बिन प्रियतम के चैन
आस में उसकी रहते ..
हर पल मेरे नैन ..
धर बंसी अधरों पर अपने ...
आयेंगे मोरे अंगना ...
इसी घडी की बाट जोहते
मोरे दिन और रैन ...
न चहिये मुझे लाल, गुलाबी ...
पीला ,हरा या रंग नारंग ....
मोहे तो भाये बस कान्हा,
और उसका श्यामल रंग ...
ऐसा रंग चढ़ा सांवरिया ..
रंग सारे फिर लगे बदरंग ..
आ जाओ अब प्रियतम प्यारे ..
प्रीत के रंग से रंग दो,अंग- अंग ......
खेलूंगी होली मै तो बस ...
सांवरिया के संग ..
सांवरिया के संग ..
----------------------पारुल'पंखुरी'
सुंदर रचना, पारुल -पर मेरी गुज़ारिश है की विषयांतर करना चाहिए. यह कान्हा-परिसर तुम्हारा होमपिच सा बन गया है.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुतीकरण,आभार.
ReplyDeleteप्रीत के रंग ऐसे ही होते हैं .. सांवरियां के रंगों में जीवन होता है ...
ReplyDeleteप्रेम का गहरा रंग लिए रचना ...
अति सुन्दर.
ReplyDeleteप्रेम का गहरा रंग लिए लाजबाब रचना,,,,बधाई पंखुरी जी,,,
ReplyDeleteRecent post : होली की हुडदंग कमेंट्स के संग
bahut khoobsoorat ahsaas se puriit, pritikar, kavita.
ReplyDeletebahut sundar di.. :)
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