आज महिला दिवस है ...महिला जिससे सृष्टि की शुरुआत हुई जिसके बिना सृष्टि चल नहीं सकती ..उसके लिए एक दिन विशेष तौर पर मनाने का क्या औचित्य है . मेरी समझ से परे है ... जिस तरह से जनम से लेकर मृत्यु तक स्त्री के साथ अन्याय हो रहा है आज भी हो रहा है ..ऐसे समय में एक दिन महिला दिवस के रूप में ???!!!! क्या ये महिलाओं को जगाने के लिए है?? या पुरुषो को बता रहे हैं हम की हाँ मै (स्त्री) भी अभी इस दुनिया का हिस्सा हूँ ...शायद मेरी बातो से आप में से बहुत लोग सहमत नहीं हो किन्तु ये मेरे अपने विचार हैं ..जो रोज देखती हूँ टीवी में ,समाचार पत्रों में ...अपने आस पास ऐसे में मेरे मन से बस इसी कविता का जनम हुआ ...
मै स्त्री हूँ...
अदभुत. अदुन्द ...अपरिहार्य...
प्रेम और स्नेह से पल में..
बंधने वाली...
पिता-भाई ..पति-पुत्र..के नियमो में..
चलने वाली..
अदभुत. अदुन्द ...अपरिहार्य...
प्रेम और स्नेह से पल में..
बंधने वाली...
पिता-भाई ..पति-पुत्र..के नियमो में..
चलने वाली..
मै स्त्री हूँ...
मैंने सदैव स्त्री धर्म निभाया है...
मृत शय्या पर पति की...
होम होते स्त्री को ही पाया है...
पुरुष जो कहता है ..वो दाता है...
नारी के बिना उसका वंश नहीं चल पाता है...
शारीरिक क्षमता की है अगर उसके पास धार..
तो मानसिक क्षमता की है मेरे
पास तलवार..
मै स्त्री हूँ...
ईश्वर ने मुझे अपनी कल्पनाओं से सजाया है...
सहनशक्ति मेरी कमजोरी नहीं...
त्याग की प्रतिमूर्ति बना ईश ने..
मुझे पृथ्वी पर उतारा है...
मै स्त्री हूँ..
मै हूँ ममत्व से भरी आंगनवारि . ..
नए अंकुर फूटते मुझमे ...
खिलती नव्या फुलवारी...
फिर भी मुझे हेय दृष्टि से देखा जाता..
घिनोनी नजरो से यहाँ वहा..
मेरे शरीर को भेदा जाता..
दाव लगते ही अस्मत को कुचला जाता..
इच्छाओ.. भावनाओं को दिन-रात मसला जाता..
कभी कोख में मारता ..कभी जिन्दा कूड़े के ढेर में फेंकता ..
कभी कर देता सौदा...कभी दहेज़ का दानव मुझे खा जाता..
हर तरफ मेरी सिसकारियो की आवाज है...
कहीं चल रही जिस्मफरोशी मेरी
..कहीं खून की बौछार है..
मै स्त्री हूँ..
सुन ले ओ अधमक !!
तुझे स्त्री की हाय में जलना होगा..
स्त्री के बिना तुझे दुनिया में सड़ना होगा..
पुरुषत्व की इच्छाओ को..
तड़प तड़प के मरना होगा..
तुझे स्त्री की हाय में जलना होगा..
स्त्री के बिना तुझे दुनिया में सड़ना होगा..
पुरुषत्व की इच्छाओ को..
तड़प तड़प के मरना होगा..
मै नेत्र हूँ ...
शिव का तीसरा नेत्र ...
जिस दिन खुला चारो और..
महाप्रलय एवं तांडव होगा..
तांडव होगा...
----पारुल 'पंखुरी '
pictures credit goes to google
आखिरी पंक्तियों में जाते जाते लगता है की लिखने वाला गुस्से से भर गया है और वो गुस्सा शब्दों में बह गया है ..अभिव्यक्ति बहुत खूब है रचना में ..मगर ये बात जो मैंने पहले कही वो कहीं कविता की कमज़ोर कड़ी सी लगती है मेरी नज़र में . पारुल ...
ReplyDeleteshukriya raunaq apni tippai bina kisi hichkichahat ke dene ke liye aur ye bilkul sahi baat hai ki ant bahut aakraamak hai ...lekin jis manodasha mei likhi gai hai waha gussa aur aakramakta hi aani thi ...
Deleteजबरदस्त , बहुत सशक्त रचना ।
ReplyDeleteshukriya amit ji :-)
Deletevery very bful...read second time... :)
ReplyDeleteज़बरदस्त ! नारी शक्ति की पुकार
ReplyDeleteसमय है !ले अब दुर्गा का अवतार ......
शुभकामनायें!
लाजबाब सटीक अभिव्यक्ति ,,, पारुल जी,बधाई
ReplyDeleteRecent post: रंग गुलाल है यारो,
सुंदर प्रस्तुति पांखुरी
ReplyDeleteबहुत प्रभावी प्रस्तुति है .......ऐसी रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई
ReplyDeleteपारुल.रचना में बहुत रोमांटिसिज़्म है. ५००० वर्ष बीत चुके है पुरुषों से इस मृदु शैली से बतियातें -अब पैने सुर में ही बात करनी चाहिए.
ReplyDeletetheek hai raju next time talwar lekar baat karungi :-)
Deleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (10-03-2013) के चर्चा मंच 1179 पर भी होगी. सूचनार्थ
ReplyDeletebahut bahut shukriya anant ji :-)
Deleteबहुत सार्थक रचना. स्त्री पक्ष को बखूबी बयां करती हुई.
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति...!:-)
ReplyDeleteबस! रौनक़ हबीब जी ने जो कहा है...उससे सहमत हैं हम भी...
~सादर!!!
हिला हिला सा हिन्द है, हिले हिले लिक्खाड़ |
ReplyDeleteभांजे महिला दिवस पर, देते भूत पछाड़ |
देते भूत पछाड़, दहाड़े भारत वंशी |
भांजे भांजी मार, चाल चलते हैं कंसी |
बड़े ढपोरी शंख, दिखाते ख़्वाब रुपहला |
महिला नहिं महफूज, दिवस बेमकसद महिला ||
बहुत ही सुंदर चित्रण नारी कि दशा का और उसके उद्गोष का जिसके स्वर दबाये नहीं जा सकते
ReplyDeleteनीलकंठ भोले की महिमा
प्रभावी रूप से अपने विचारों को मुखर करती सुंदर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ.
यह एक सशक्त रचना तो है ही साथ सदियों से दबी हुई आक्रोश भी ज्वालामुखी तरह फट पड़ा है .
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ.
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भावित करते भाव..... बहुत गहरे उतरी यह सशक्त और अर्थपूर्ण रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया मोनिका जी ..
Delete*प्रभावित
ReplyDeleteज़बरदस्त रचना | अत्यंत प्रभावी और प्रलयंकारी क्रन्तिकारी रचना | बधाई |
ReplyDeleteशुक्रिया तुषार :-)
Deleteआप सभी का ब्लॉग पर आने और अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए विशेष धन्यावाद ..आशा है ये स्नेह आगे भी यु ही मिलता रहेगा :-)
ReplyDeleteबहुत ही प्रभावी ... नारी मन के आक्रोश को लिखा है ...
ReplyDeletetouching :)
ReplyDeleteहालाँकि अपने आप को संयत रख पाना शक्ति का प्रमान है। मगर एक निश्चित सीमा के बाद क्रोध उचित ही है। वरना उसे कमजोर समझा जाने लगता है।
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