कोई कितना भी साथ रहे एक न एक दिन चला ही जाता है ..तब फिर से ना चाहते हुए भी तन्हाई अपनी बाहों में घेर लेती है...पहले पहल गुस्सा आता था चिढ होती थी मगर अब तन्हाई सहेली बन गई है ...इसलिए अक्सर लोगो से कह देती हू ...
अकेला छोड़ दो मुझको ..
के तन्हाई रास आ गई है ...
रोशन महफिले हो या ..
सूनी रात का सन्नाटा ..
बना के बाहों का घेरा ..
वो आसपास आ गई है ...
कभी अश्को से खेलती ..
कभी निंदिया को ढूंढ़ती ..
वो बन के मेरी हमसफ़र ..
मेरे एहसास पा गई है ...
जाती नहीं कभी कहीं ..
वो मुझको छोड़कर ...
बन के मेरी परछाई ....
वो मेरे साथ आ गई है ....
सिसकियों को बांधती ..
कभी मुझको संभालती ...
धीरे -धीरे तन्हाई अब ..
मेरे भी मन को भा गई है ..
अकेला छोड़ दो मुझको ..
के तन्हाई रास आ गई है ...
-----------पारुल'पंखुरी'
bahut sundar di.. :) sweetly written
ReplyDeletethank u gaurav :-) blog ke udghaatan ke baad meri likhi ye pehli kavita hai jispe pehle comment tumne kiya hai ..ab to krishna ko bhi sir pe hath rakhna hi hoga ..:-)
Deletevry nice...:)
ReplyDeletethanx di :-)
Deleteaapki is kavita se bhi mujhey ek mukesh ji ka geet yaad aa raha hai "mujhko is raat ki tanhaai me awaaj na do ..awaj na do........" film "dil bhi tera ham bhi terey "
ReplyDeleteaapki kavita me jis tarah se "tanhai" ko sunder saheli jaisaa bana liyaa hai ,aur ussey apney ko jodaa hai ,bahut sunder ..."TANHAI" KO BHI AAPNEY KHUBSURAT JAAMAA PEHNAA DIYAA HAI .EXCELLENT .
aapke itne sundar comment ke liye bahut bahut shukriya chander ji :-)
Deleteकितना सुन्दर इत्तेफाक(शायद) है , आज जगजीत जी का जन्मदिन है और आपकी इतनी सुन्दर कविता पर उनकी ही एक गजल याद आती है -
ReplyDelete"मैं और मेरी तन्हाई |"
या फिर आप गुलज़ार का उदाहरण लें -
"मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बातें करते हैं |"
अक्सर हमने कवियों को तन्हाई को प्रतीकात्मक इंसानी रूप देते सुना/पढ़ा है , ये कविता भी इसी श्रृंखला की एक सुन्दर कड़ी है | मेरे विचार से इसका असली अर्थ निकलता है कि अमुक इंसान ने खुद में ही खुश रहना सीख लिया है | जब हमें खुश रहने के लिए और किसी की जरूरत नहीं रहती तब हमें तन्हाई भी पसंद आने लगती है |
"मेरी तन्हाई मुझे कभी तन्हा नहीं रहने देती |"
.
@!</\$}{
aakash itne detaled comment ke liye shukriya :-)
Deletewaah bahut sundar likha hai..actually bahut dil se likha hai....lvd it dear
ReplyDeletethanx sweety :-)
Deleteपारुल जी .मेरा तजुर्बा कहता है ....
ReplyDeleteरुसवाई किसी का होने नही देती
तन्हाई चैन से सोने नही देती....
अशोक'अकेला'
मेरी अगली पोस्ट होगी
'अकेला' का अकेलापन ....कब ???
स्वस्थ रहें!
Dear sir aapki rachna ka intjar rahega :-)
Deletesaadar
कोमल अहसास व्यक्त करती भावपूर्ण रचना..
ReplyDeleteदुआ है कभी तन्हाई का सामना ना हो...
शुभकामनाएँ...
:-)
aapki dua aur comment dono ke liye shukriya reena :-)
Deletezindagi aksar mukkammal tanhai ki talaash karti hai. shaayad dunia ki bheed se bachne k liye, shaayad khoye hue khud ko fir se pa lene k liye.......
ReplyDeletenice one...........
thanx savi :-)
Deleteनहीं.पारुल मुझे यह कविता कम और चालाकी ज्यादा लगती है. तुम्हारी रचनाओं में एक मासूमियत होती है जो यहाँ नदारद है.
ReplyDeleteDear raju ...kavita ke sath maine koi chalaki nahi ki ..haan chalaki hai to bs itni ki tanhai saheli ban gai aisa kh ke khud ko hi dhoka diya ...lekin ho sakta hai meri doosri rachna ke saamne ye kuch kam jachi ho tumhe ..comment ke liye shukriya :-)
DeleteAcchi koshish hai parul ji......
ReplyDeleteshukriya sharad ... koshish karne walo ki haar nahi hoti ...
Deleteसुन्दर अहसासों को सहलाती, प्यारी पंक्तियाँ ...रोशन महफिले हो या ..
ReplyDeleteसूनी रात का सन्नाटा ..
बना के बाहों का घेरा ..
वो आसपास आ गई है . बहुत अच्छे.
hausla afjai ke liye शुक्रिया नीरज :-)
Deleteतन्हाई रास आ जाए तो जीवन आसान हो जाता है ...
ReplyDeleteसब के साथ तो ऐसे भी समय बीत ही जाता है ...
जी बिलकुल सही कहा आपने मगर मुश्किल यही है की तन्हाई रास बहुत मुश्किल से आती है ....
Delete--सादर
जिन्हें स्वयं से प्यार होता है ,वे ही दूसरों से प्यार कर सकते हैं । खुद का अकेलेपन का एहसास करने वाला ही दूसरों का खालीपन समझ सकता है । सुन्दर एवं मर्मपूर्ण प्रस्तुति ।
ReplyDeleteशुक्रिया अमित जी आज आपकी रचना जीमेल पढ़ी बहुत रोचक लगी ..आप मेरे ब्लॉग पर आये मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है ...हौसला बढ़ने के लिए शुक्रिया :-)
Deleteअकेला छोड़ दो मुझको ..
ReplyDeleteके तन्हाई रास आ गई
बहुत खूब !
शुक्रिया सतीश जी :-)
Deleteवाह ! बेहद खूबसूरती से कोमल भावनाओं को संजोया इस प्रस्तुति में आपने ...
ReplyDeleteशुक्रिया संजय जी ..ब्लॉग पर आने और इतना सुन्दर कमेंट करने के लिए भी :-) उम्मीद है आगे भी आप ब्लॉग पर आते रहेंगे और मेरी रचनाओ के विषय में मुझे बताएँगे :-)
Deleteआज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ। आपकी रचनाओं ने खासा प्रभावित किया है। आपकी भाषा दिल से निकली हुई सच्ची और पवित्र भाषा है ...बहुत बहुत बधाई सभी अनुपम रचनाओं के लिए।
ReplyDeleteआपका बहुत आभार अखिल जी मेरी रचनाओं के विषय में आपने जो कहा उससे मई भी प्रभावित हो गई ...उम्मीद है आगे भी मेरी रचनाओं को आपका प्यार मिलता रहेगा .....
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