मेरे प्यारे दोस्तों ब्लॉग की दुनिया में आये हुए मुझे अभी ज्यादा वक़्त
नहीं हुआ ..लेकिन जिस तरह आप सब ने मुझे अपनाया और अपना स्नेह दिया लगता ही
नहीं की मै यहाँ अभी नई नई आई हूँ ...मेरी कविताओं और विचारो को आपने
अपनी सुन्दर टिप्पणियों से सजा दिया ..जिससे मेरे ब्लॉग की खूबसूरती और भी
बढ़ गई ...मुझे हर रोज कुछ नया करना अच्छा लगता है कुछ क्रिएटिव करने का चाव
हमेशा मेरे मन में रहता है ..तो आज फिर मै आप सबके सामने कुछ अलग लेकर आई
हूँ ...आज जिस रचना की मै बात कर रही हूँ उसका शीर्षक है "कौन रंग फागुन रंगे ...." ये
मैंने नहीं लिखी है ...इसके कवि हैं श्री दिनेश शुक्ल जी और ये सुन्दर
कविता http://manaskriti.com/kaavyaalaya/ के सुन्दर कविता रुपी मोतियों
में से एक मोती है ...मुझे इस कविता को recite करने का मौका दिया श्री
विनोद तेवारी जी और वाणी मुरारका जी ने .....तो प्रस्तुत है आप सभी के
लिए होली के उपलक्ष में ये सुन्दर सलोना फागुन गीत :-) सुन कर अपनी
प्रतिक्रिया अवश्य दीजियेगा ..मै प्रतीक्षा में हूँ ..
---आप सबकी प्यारी पारुल'पंखुरी'
---आप सबकी प्यारी पारुल'पंखुरी'
कविता का audio सुनने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक कीजिये फिर वह प्ले का बटन प्रेस कीजिये
कौन रंग फागुन रंगे...
कौन रंग फागुन रंगे, रंगता कौन वसंत,
प्रेम रंग फागुन रंगे, प्रीत कुसुंभ वसंत।
रोमरोम केसर घुली, चंदन महके अंग,
कब जाने कब धो गया, फागुन सारे रंग।
रचा महोत्सव पीत का, फागुन खेले फाग,
साँसों में कस्तूरियाँ, बोये मीठी आग।
पलट पलट मौसम तके, भौचक निरखे धूप,
रह रहकर चितवे हवा, ये फागुन के रूप।
मन टेसू टेसू हुआ तन ये हुआ गुलाल
अंखियों, अंखियों बो गया, फागुन कई सवाल।
होठोंहोठों चुप्पियाँ, आँखों, आँखों बात,
गुलमोहर के ख्वाब में, सड़क हँसी कल रात।
अनायास टूटे सभी, संयम के प्रतिबन्ध,
फागुन लिखे कपोल पर, रस से भीदे छंद।
अंखियों से जादू करे, नजरों मारे मूंठ,
गुदना गोदे प्रीत के, बोले सौ सौ झूठ।
पारा, पारस, पद्मिनी, पानी, पीर, पलाश,
प्रंय, प्रकर, पीताभ के, अपने हैं इतिहास।
भूली, बिसरी याद के, कच्चेपक्के रंग,
देर तलक गाते रहे, कुछ फागुन के संग।
प्रेम रंग फागुन रंगे, प्रीत कुसुंभ वसंत।
रोमरोम केसर घुली, चंदन महके अंग,
कब जाने कब धो गया, फागुन सारे रंग।
रचा महोत्सव पीत का, फागुन खेले फाग,
साँसों में कस्तूरियाँ, बोये मीठी आग।
पलट पलट मौसम तके, भौचक निरखे धूप,
रह रहकर चितवे हवा, ये फागुन के रूप।
मन टेसू टेसू हुआ तन ये हुआ गुलाल
अंखियों, अंखियों बो गया, फागुन कई सवाल।
होठोंहोठों चुप्पियाँ, आँखों, आँखों बात,
गुलमोहर के ख्वाब में, सड़क हँसी कल रात।
अनायास टूटे सभी, संयम के प्रतिबन्ध,
फागुन लिखे कपोल पर, रस से भीदे छंद।
अंखियों से जादू करे, नजरों मारे मूंठ,
गुदना गोदे प्रीत के, बोले सौ सौ झूठ।
पारा, पारस, पद्मिनी, पानी, पीर, पलाश,
प्रंय, प्रकर, पीताभ के, अपने हैं इतिहास।
भूली, बिसरी याद के, कच्चेपक्के रंग,
देर तलक गाते रहे, कुछ फागुन के संग।
- दिनेश शुक्ल
बहुत बढ़िया गीत है .आपकी आवाज ने चारचंद लगा दिया
ReplyDeletelatest post भक्तों की अभिलाषा
latest postअनुभूति : सद्वुद्धि और सद्भावना का प्रसार
ऑडियो सुनने के लिए लिंक पर कोई आप्सन नही मिल रहा है,,,,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteबहुत खूब...
:-)
bahut sunder rachna
ReplyDeleteaagrah hai mere blog main bhi sammlit hon
jyoti-khare.blogspot.in
वाह बहुत खूबसूरत कविता और बहुत ही मदमाती आवाज, बहुत बधाई आपको.
ReplyDeleteसभी दोहे बहुत ही सुन्दर ... होली के मनभावन महक ओर सुनहरी रंग लिए ...
ReplyDeleteहोली की शुभकामनाएं ...
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.
ReplyDelete"स्वस्थ जीवन पर-त्वचा की देखभाल:कुछ उपयोगी नुस्खें"
अरे वाह..अभी तक आपके मीठे मीठे शब्द हमें आनन्द दे रहे थे, अब आपकी मीठी सी आवाज़ ने होली को और भी आनन्दमय बना दिया। आपकी आवाज़ बहुत अच्छी है। मानना पड़ेगा ऊपरवाले को यकीन कीजिए मैं भी गाती हूं..। आप अपनी कविताओं को लयबद्ध करें और हमें सुनने का अवसर दें...
ReplyDeleteदी गई लिंक पर पोस्ट खुलने के बाद प्ले का कही पर कोई आप्सन नही आ रहा,,,,,
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