ना चढ़ी हाथो में लाली...लगा के भी हिना...
फीके - फीके लगे मुझे रंग और गुलाल...
हर पल तरसे अँखियाँ..रहे तेरा ख्याल...
रंग लाल हो पीला..हरा या नीला..
ना भाये कोई रंग मुझे ..ना ये मौसम रंगीला...
कैसे मनाऊ मै होली पिया तेरे बिना...
तुम साथ होते हो तो रंग मुझे बहुत लुभाते हैं...
मन में उमंग ..चेहरे पे ख़ुशी ले आते हैं..
अब तुम नहीं हो तो मैंने ये जाना...
वो सब रंग तो तुझे देख के मेरे चेहरे पे आते हैं ...
तेरे देखने से जब चेहरा मेरा..गुलाबी हो जाता है...
वो रंग तेरे साथ का मुझे सबसे ज्यादा भाता है..
अब जो तुम नहीं हो..तो धुंधलका सा है छा रहा...
लाल..हरा गुलाबी..कोई रंग मेरे मन को नहीं लुभा रहा...
रंगीला ये मौसम दिल को और भी तरसा रहा...
के आ जाओ ये विरह का मौसम नहीं सहा जा रहा...
दिल में रंगों का इन्द्रधनुष है नहीं खिला...
कैसे मनाऊ मै होली पिया तेरे बिना...
कैसे मनाऊ मै..होली...
------------------------------पारुल'पंखुरी'