क्यू मौसम आज महकने लगा
क्यू उमंगो पे सवार होके मन ये चला
क्यू दबे होठो पे धीमी हँसी आ गई
क्यू तन मन मेरा गुलमोहर हुआ
क्यू उम्मीदों के नए पंख लगने लगे
क्यू नैना ये सपने सजाने लगे
क्यू पलकें मेरी झुक के न उठीं
क्यू पर्दों में कई रंग छाने लगे
सांवला रंग मोहे ऐसा भाया सखी
खोई सुध-बुध हुई मै भी साँवरी
प्रीत के रंग से मै तो ऐसी रंगी
जैसे गोपी कोई कृष्ण प्रेम में बावरी
प्रेम में बावरी.
------------पारुल 'पंखुरी'
उसी का प्रेम शास्वत भी है , बाकी सारे प्रेम नश्वर |
ReplyDeleteप्रेम की पराकाष्ठा है वो |
prem karna bhi wahi sikhata h aakash :-)
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