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Wednesday, 12 February 2014

तुम मिले


तुम मिले तो .. जीवन में बसंत छा गया 
धीरे से कानो में मेरे, प्रेम गीत गा गया

तितलियाँ फूलो पर मंडराने लगी
खुशबु हारसिंगार कि चारों ओर बही
पग-पखारने को तुम्हारे
पथ में कलियाँ बिछी
किया तुमने स्वीकार जब
कलियों का प्रणय निवेदन,तब
बादलो ने किया शंखनाद
हवाओ के रथ पे होके सवार
प्रेम तुम्हारा, मन मेरा , महका गया
तुम मिले तो जीवन में बसंत छा गया

धूप रुपी सुंदरी ओढ़े मेघ चुनरी
सखी बन मेरी घर तुम्हे लाने लगी
थोड़ी लाज थोड़ी शर्म हिलोरे मारे उमंग
ख़ुशी अश्रु बन नयनों से मेरे बही
जब आँगन में तुमने रखे अपने पग
घटाएं मंत्र विवाह के थी सुनाने लगी
गले में मेरे तुमने बाहों के डाले हार
उस पल जीवन मेरा अर्थ पा गया
तुम मिले तो जीवन में बसंत छा गया
तुम मिले तो …………
------------------------------------पारुल'पंखुरी'

picture courtesy---thisveganrants.blogspot.com(via google)

12 comments:

  1. श्रृंगार रस की सुन्दर कृति ....प्रेम का खूबसूरत चित्रण ! :)

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  2. बहुत ही सुन्दर एवं भावों से भरी प्यार से भरी प्यारी कविता. वसंत एवं valentine दोनों के लिए बहुत उपयुक्त कविता .. बहुत खूब .

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  3. बहुत खूबसूरत प्रेममय और प्रेम को समर्पित रचना ।

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  4. बहुत खूब ! लाजबाब,प्रस्तुति...!
    RECENT POST -: पिता

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  5. Ekdam basant k mausam jaisa mohak aur bahut rumaani khayaal! Har shabd itna masoom hai..bahut sunder kavita hai Pankhuri Di!

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  6. प्रेम के कोमल मधुर एहसास लिए ...

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  7. बहुत सुंदर प्रस्तुति.
    इस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 15/02/2014 को "शजर पर एक ही पत्ता बचा है" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1524 पर.

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  8. रूमानी ख्यालात का रूमानी प्रस्तुति..बहुत सुन्दर !
    new post बनो धरती का हमराज !

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  9. कोमल अहसासों की मधुर भावाभिव्यक्ति...! वसंत का पूरा भाव-पक्ष प्रकट हो उठा है आपकी काव्य-रचना में...! बधाई..!

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  10. मन के मधुरतम भावों की रस सरिता !

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  11. ☆★☆★☆


    गले में मेरे तुमने बाहों के डाले हार
    उस पल जीवन मेरा अर्थ पा गया
    तुम मिले तो जीवन में बसंत छा गया

    सुंदर ! अति सुंदर !

    आदरणीया पंखुरी जी
    सुंदर प्रेम कविता लिखने के लिए
    साधुवाद और मंगलकामनाएं !


    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  12. भीड़ में एक अजनबी का सामना अच्छा लगा
    सब से छुपकर वो किसी का देखना अच्छा लगा

    सुरमई आँखों के नीचे फूल से खिलना अच्छा लगा
    कहते कहते कुछ किसी का सोचना अच्छा लगा

    बात तो कुछ भी नहीं थी लेकिन उस का एक दम
    हाथ को होठों पे रख कर रोकना अच्छा लगा

    चाय में चीनी मिलाना उस घडी भाया बहुत
    जर-ऐ लब वो मुस्कुराता शुक्रिया अच्छा लगा

    दिल में कितने अहद बांधे थे भुलाने के उसे
    वो मिला तो सब इरादे तोड़ना अच्छा लगा

    बे-इरादा लब्स की वो सनसनी प्यारी लगी
    कम तवज्जो आँख का वो देखना अच्छा लगा

    नीम शब् की ख़ामोशी में भीगती सड़कों पे कल
    तेरी यादों के जालो में घूमना अच्छा लगा

    उस उर्दू-ऐ-जान को "अमजद" मैं बुरा कैसे कहूँ
    जब भी आया सामने वो बेवफा अच्छा लगा

    Gulzar

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