कितने दिलकश होते हैं वो
उडी नींदों भरी रातें और बेचैनी भरे रंगीले दिन
नजरो से नजरो की मुलाकातों भरे नशीले दिन
खामोशियों में भी बेइंतहा बातों भरे सजीले दिन
धडकनों का एहसास दिलाते गुदगुदाते रसीले दिन
कितने दिलकश होते हैं वो ....
खुद से हरदम पूछे मासूम सवालातो भरे हंसाते दिन
तनहाइयों में रहने का बहाना बनाते गुनगुनाते दिन
कुछ अजीब सी उलझनों में उलझाते बलखाते दिन
बला की ख़ूबसूरती आईने में दिखाते इतराते दिन
कितने दिलकश होते हैं वो …
दिल की बात होंठो तक आने को कसमसाते दिन
इकरार और इजहार से पहले के टिमटिमाते दिन
मुहब्बत उसको भी है ये सोच के सकुचाते शरमाते दिन
मुहब्बत मुझको भी है ये सोच के लहलहाते मुस्कुराते दिन
-------------पारुल 'पंखुरी'
picture courtesy--via google (abstract.desktopnexus.com)
muskurate din hamesha rahe !
ReplyDeletenew postकिस्मत कहे या ........
New**अनुभूति : शब्द और ईश्वर !!!
बहुत खूब,सुंदर सृजन ...! पंखुरी जी...
ReplyDeleteRECENT POST - फागुन की शाम.
वाह....
ReplyDeleteदिलकश नज़्म....
अनु
Waqai.. pankhuri di acha bayan kia Dilkashi ko..!!
ReplyDeleteबहुत ही सरस मनोरम कविता.. विभिन्न प्रकार से प्रेम रस में सराबोर दिवसों की ऐसी चर्चा तो किसी कविता में ही संभव है .. बहुत उम्दा अभिव्यक्ति.. हार्दिक बधाई ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रेम गीत ......भावभीनी अभिव्यक्ति.....
ReplyDeletevaah...........ati sundar.............
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteबहुत खूब... सुंदर भावाभिव्यक्ति...
ReplyDeleteखूबसूरत से दिलकश वो दिन ... भावपूर्ण रचना है ...
ReplyDeleteसुन्दर ..मधुर ....
ReplyDeleteवाह भावपूर्ण
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