तन पिंजड़ा मन कैदी उड़ने को मेरा जी चाहे
बंधी हुई मैं जंजीरों से मन तोड़ तोड़ उनको हारे
कुछ ख्वाब टूटे कुछ ख्वाइशें अधूरी
उस पर कुछ आंसू घुटते मरते
मेरे जिस्म के एक सिरे से दूजे सिरे तक दौड़े भागे
तन पिंजड़ा मन कैदी उड़ने को मेरा जी चाहे
इस दर्द ने मुझको बहका ही लिया
मुझमें ही मुझको क़ैद किया
कौन हूँ मैं क्या नाम है मेरा
इस टीस ने ये भी भुला दिया
आईना भी मेरा मुझे पहचानता नहीं
ए मेरे खुदा मुझे तू मुझसे मिला
तन पिंजड़ा मन कैदी उड़ने को मेरा जी चाहे
मन किस दोराहे पे है खड़ा हुआ
एक छटपटाहट से है ये भरा हुआ
मेरे बंधन सारे खोल दे
सौदा है ये भी गर तुझसे
मेरी मुस्कानें तू मोल ले
कैदी मन को मेरे तू अपनी नेमतों से तोल दे
तन पिंजड़ा मन कैदी उड़ने को मेरा जी चाहे
उड़ने को मेरा जी चाहे
----------------------------------पारुल'पंखुरी'
चित्र-- साभार गूगल (
तन पिंजरा मन कैदी उड़ने को जी चाहे .... बहुत भावुक करती हुई रचना ॥
ReplyDeleteशुक्रिया नीरज ब्लॉग पर स्वागत है तुम्हारा!
DeleteWaah.... Sunder Bhavabhivykti...
ReplyDeleteशुक्रिया मोनिका जी
Deleteबहुत ही सुंदर और भावुक ... क्यों ना बार-बार पढ़ जायें :)
ReplyDeletejarur shikha blog par aane aur mujhe saraahne ke liye bahut bahut shukriya
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