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जिंदगी का हर दिन ईश्वर की डायरी का एक पन्ना है..तरह-तरह के रंग बिखरते हैं इसपे..कभी लाल..पीले..हरे तो कभी काले सफ़ेद...और हर रंग से बन जाती है कविता..कभी खुशियों से झिलमिलाती है कविता ..कभी उमंगो से लहलहाती है..तो कभी उदासी और खालीपन के सारे किस्से बयां कर देती है कविता.. ..हाँ कविता.--मेरे एहसास और जज्बात की कहानी..तो मेरी जिंदगी के हर रंग से रूबरू होने के लिए पढ़ लीजिये ये पंखुरी की "ओस की बूँद"

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Friday, 7 March 2014

कैसे लिखूँ कविता

महिला दिवस पर सोचा के कविता लिखूँ मगर लिख नहीं पायी |
लिखूँ भी तो क्या बच्चियां ,जवान ,बूढी ,कुवांरी ,शादीशुदा
स्त्री कैसी भी हो  कहीं पर भी सुरक्षित नहीं ..बहुत पीड़ा होती है
मन को जब आये दिन छोटी बच्चियों के साथ दुराचार की घटनाएं
सुनने को मिलती है  






कैसे लिखूँ कविता
व्यथित हृदय के छोर से ,
गूँज रही मस्तिष्क में
महाभारत हर ओर से।
हर राह में दुःशासन,
हर घर में शकुनि
पांडव रहा नहीं कोई ,
बदलने को नियति
चीथड़ों में सिमटी ,
पड़ी वह भोर से
कैसे लिखूँ कविता
व्यथित हृदय के छोर से।
पूजते हैं गौरी ,हर्ष
गौरी का मनाते नहीं
माधव भी अब ,बचाने
लाज आते नहीं
मासूमियत छिनी ,
बचा निष्प्राण मन
सिसकियाँ कुचली गयी
भीड़ के शोर से
कैसे लिखूँ कविता
व्यथित हृदय के छोर से।
----------------------------पारुल'पंखुरी'


picture courtesy : google 

2 comments:

  1. बहुत सुंदर सृजन...! पंखुरी जी ....

    RECENT POST - पुरानी होली.

    ReplyDelete
  2. मन के भाव लिख दिए आपने ... बदलना होगा ये समाज सब की मिल के ...
    भावपूर्ण ..

    ReplyDelete

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