कैसे लिखूँ कविता
व्यथित हृदय के छोर से ,
गूँज रही मस्तिष्क में
महाभारत हर ओर से।
हर राह में दुःशासन,
हर घर में शकुनि
पांडव रहा नहीं कोई ,
बदलने को नियति
चीथड़ों में सिमटी ,
पड़ी वह भोर से
कैसे लिखूँ कविता
व्यथित हृदय के छोर से।
पूजते हैं गौरी ,हर्ष
गौरी का मनाते नहीं
माधव भी अब ,बचाने
लाज आते नहीं
मासूमियत छिनी ,
बचा निष्प्राण मन
सिसकियाँ कुचली गयी
भीड़ के शोर से
कैसे लिखूँ कविता
व्यथित हृदय के छोर से।
----------------------------पारुल'पंखुरी'
हर राह में दुःशासन,
हर घर में शकुनि
पांडव रहा नहीं कोई ,
बदलने को नियति
चीथड़ों में सिमटी ,
पड़ी वह भोर से
कैसे लिखूँ कविता
व्यथित हृदय के छोर से।
पूजते हैं गौरी ,हर्ष
गौरी का मनाते नहीं
माधव भी अब ,बचाने
लाज आते नहीं
मासूमियत छिनी ,
बचा निष्प्राण मन
सिसकियाँ कुचली गयी
भीड़ के शोर से
कैसे लिखूँ कविता
व्यथित हृदय के छोर से।
----------------------------पारुल'पंखुरी'
picture courtesy : google
बहुत सुंदर सृजन...! पंखुरी जी ....
ReplyDeleteRECENT POST - पुरानी होली.
मन के भाव लिख दिए आपने ... बदलना होगा ये समाज सब की मिल के ...
ReplyDeleteभावपूर्ण ..