पंखुरी के ब्लॉग पे आपका स्वागत है..
जिंदगी का हर दिन ईश्वर की डायरी का एक पन्ना है..तरह-तरह के रंग बिखरते हैं इसपे..कभी लाल..पीले..हरे तो कभी काले सफ़ेद...और हर रंग से बन जाती है कविता..कभी खुशियों से झिलमिलाती है कविता ..कभी उमंगो से लहलहाती है..तो कभी उदासी और खालीपन के सारे किस्से बयां कर देती है कविता.. ..हाँ कविता.--मेरे एहसास और जज्बात की कहानी..तो मेरी जिंदगी के हर रंग से रूबरू होने के लिए पढ़ लीजिये ये पंखुरी की "ओस की बूँद"
अरे सरिता मेरे जूते कहाँ हैं ?हजार बार तुम्हे कहा है की इन्हें साफ़ कर के पोलिश कर के रखा करो । और ये क्या है इस सूट के साथ ये टाई !!! तुम 10 साल बाद भी गवार की गंवार ही हो एक चीज भी बदल नहीं पायी तुम अपने अंदर । चलो अब मुझे ही देखती रहोगी या नाश्ता भी लगाओगी ।
बस जब देखो ये तले भुने घी के परांठे बना देती हो करती क्या हो तुम सारा दिन घर पे , और कुछ नहीं तो कम से कम कुछ ढंग का खाना ही बनाना सीख लो । मेरी माँ तो वैसे ही बिस्तर पर हैं बच्चे स्कूल चले जाते हैं उसके बाद तुम सारा दिन सिवाय पलंग तोड़ने के करती क्या हो । सारा मूड ख़राब कर दिया तुमने
जा रहा हूँ मैं आज women's day के उपलक्ष में एक सभा का आयोजन किया गया है जिसकी सारी जिम्मेदारी मुझ पर है लेकिन तुम्हे क्या सारा दिन ख़राब हो गया
रुकिए....
अब क्या है हजार बार कहा है पीछे से मत टोका करो
वो माननीया अतिथी जी को पहनाने के लिए जो शॉल लाये थे वो आप यह भूल कर जा रहे थे मैं बस वही देने आई हूँ लीजिये
बाय !!
Happy women's day !!!
----parul'pankhuri'
picture credit --google
होली का गीत सुनने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक कीजिये
https://soundcloud.com/parul-gupta-2/holi-ka-geet
अ र र र र र र र र ...
हो फागुन रंग रंगीला आया
मस्ती होली की ले आया
तन मन रंगों सा हरसाया
मिलकर धूम मचाये री इइइइ
अ र र र र र र र र ...
हो कोई पिचकारी भर लाओ
सखा को बातों में उलझाओ
जम कर लट्ठ इन पे बरसाओ
कोई बच के ना जाए री इइइइ
अ र र र र र र र र ...
कान्हा जब आये गलियन में
गोपी हो गयी सारी संग में
भागी सब कान्हा ने रंगने
कान्हा मन मुस्काये री इइइइ
अ र र र र र र र र ...
कान्हा ने बंसी ऐसी बजाई
सुध बुध दी सबने बिसराई
कर ली खुद ही खुद की रंगाई
कान्हा ने फाग मचाया री इइइइ
अ र र र र र र र र ...
~~~पारुल'पंखुरी'
विधा-- हाइकु
बेवक़्त वर्षा
किसान पर मार
धान बेकार
सपने बोता
हलधर बरसों
रोई सरसों
फागुन गीत
कृषक कैसे गाये
मेघ रुलाएं
सीलता चूल्हा
महंगाई की मार
खेप बेकार
और आखिर में एक विनती ईश्वर से ....
थामो बारिश
रहम बरसाओ
सूर्य दिखाओ
--पारुल'पंखुरी'
चित्र -- साभार गूगल