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Wednesday 9 October 2013

चीख





















रात हो जाती है जब घनी स्याह
तूफ़ान समुन्दर में उठते हैं अथाह
उस पहर जब
जिन्दा भी मुर्दों की श्रेणी में आते हैं
मरहम से सपने नींद सजाते  हैं
महसूस होता है एक साया
जिस्म पर हाथ फेरता
चूड़ियाँ तब भी टूटती हैं
दर्द की वो भी पराकाष्ठा है
मगर चीख मेरे जिस्म से
बाहर नही निकलती
क्योंकि -
उसके पास "सर्टिफिकेट" है

--------------पारुल 'पंखुरी'

चित्र- साभार गूगल से 

8 comments:

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...!
    नवरात्रि की शुभकामनाएँ ...!

    RECENT POST : अपनी राम कहानी में.

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  2. कम शब्दों में गहरी बात कह डाली,
    पीड़ादायक सत्य....

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  3. भावपूर्ण रचना |

    मेरी नई रचना :- मेरी चाहत

    ReplyDelete
  4. वाह बहुत सुंदर शब्द चित्र
    उत्कृष्ट प्रस्तुति

    सादर

    आग्रह है---
    पीड़ाओं का आग्रह---

    ReplyDelete
  5. मार्मिक ओर संवेदनशील ... पर क्या सार्टिफिकेट गहरे दर्द का साधन है ... मन को छलनी करना क्या कागज़ पाने समान है ...

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  6. अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण पर कडवी सच्चाई।

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  7. बेहद मर्मस्पर्शी !

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