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जिंदगी का हर दिन ईश्वर की डायरी का एक पन्ना है..तरह-तरह के रंग बिखरते हैं इसपे..कभी लाल..पीले..हरे तो कभी काले सफ़ेद...और हर रंग से बन जाती है कविता..कभी खुशियों से झिलमिलाती है कविता ..कभी उमंगो से लहलहाती है..तो कभी उदासी और खालीपन के सारे किस्से बयां कर देती है कविता.. ..हाँ कविता.--मेरे एहसास और जज्बात की कहानी..तो मेरी जिंदगी के हर रंग से रूबरू होने के लिए पढ़ लीजिये ये पंखुरी की "ओस की बूँद"

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Friday 19 October 2012

तुम..दूर..जा..रहे..हो......







तुम दूर जा रहे हो या पास आ रहे हो

ये किस तरह मेरे दिल को तडपा रहे हो

नजरे झुकाऊँ तो इनमे चेहरा तेरा

पलके उठाऊँ तो हर तरफ खालीपन मेरा

किस भ्रम से मुझको बहला रहे हो

तुम दूर जा रहे हो या पास आ रहे हो

आईने में तेरी छवि सी है

कानो में गूंजे तेरी बोली कवि सी है

तेरे बिना जिंदगी में कमी सी है

आईने के कर दिए टुकड़े मैंने

टुकड़े टुकड़े में फिर भी तुम मुस्कुरा रहे हो

तुम दूर जा रहे हो या पास आ रहे हो

जितना भुलाना चाहा उतना करीब आ गए तुम

याद बन के दिल में मेरे घर बसा गए तुम

आज भी दिल के तारो को झनझना रहे हो

तुम याद आ रहे हो....बहुत याद आ रहे हो

-------पारुल 'पंखुरी'

2 comments:

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