पंखुरी के ब्लॉग पे आपका स्वागत है..

जिंदगी का हर दिन ईश्वर की डायरी का एक पन्ना है..तरह-तरह के रंग बिखरते हैं इसपे..कभी लाल..पीले..हरे तो कभी काले सफ़ेद...और हर रंग से बन जाती है कविता..कभी खुशियों से झिलमिलाती है कविता ..कभी उमंगो से लहलहाती है..तो कभी उदासी और खालीपन के सारे किस्से बयां कर देती है कविता.. ..हाँ कविता.--मेरे एहसास और जज्बात की कहानी..तो मेरी जिंदगी के हर रंग से रूबरू होने के लिए पढ़ लीजिये ये पंखुरी की "ओस की बूँद"

मेरी कवितायें पसंद आई तो मुझसे जुड़िये

Thursday, 12 June 2014

मै चुप रहा







रक्त रिसता रहा
आग जलती रही
कभी राम
कभी रहीम
बलि चढ़ती रही
सियासी चालों की भेंट
मै चढ़ता गया
फिर भी मै चुप रहा

लूट डकैती
गोली सरेआम
लाल हुई सुबह
हुई शाम लाल
दिन डरावने
रातें भयंकर
नौनिहालों पर कहर
बरसा निरंतर
खून के आँसू
मै पीता गया
फिर भी मै चुप रहा

काँधें मेरे
अब
झुकने लगे
पेड़ो पर जब
शव लटकने लगे
माता बहन
या हों बच्चियां
अभी बहुत
बाकी हैं रस्सियाँ

हाय!
पीड़ा से ह्रदय
मेरा छलनी हुआ
क्यूँ अब तक
मै यूँ चुप रहा
फटता ज्वालामुखी
नवनिर्माण होता
इस तरह मै ना
यूँ लहुलुहान होता
क्या हूँ आज
मात्र
लोथड़ों का
अवशेष हूँ
मै
उत्तर प्रदेश हूँ

------------पारुल'पंखुरी'
चित्र -- साभार गूगल
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...