
रक्त रिसता रहा
आग जलती रही
कभी राम
कभी रहीम
बलि चढ़ती रही
सियासी चालों की भेंट
मै चढ़ता गया
फिर भी मै चुप रहा
लूट डकैती
गोली सरेआम
लाल हुई सुबह
हुई शाम लाल
दिन डरावने
रातें भयंकर
नौनिहालों पर कहर
बरसा निरंतर
खून के आँसू
मै पीता गया
फिर भी मै चुप रहा
काँधें मेरे
अब
झुकने लगे
पेड़ो पर जब
शव लटकने लगे
माता बहन
या हों बच्चियां
अभी बहुत
बाकी हैं रस्सियाँ
हाय!
पीड़ा से ह्रदय
मेरा छलनी हुआ
क्यूँ अब तक
मै यूँ चुप रहा
फटता ज्वालामुखी
नवनिर्माण होता
इस तरह मै ना
यूँ लहुलुहान होता
क्या हूँ आज
मात्र
लोथड़ों का
अवशेष हूँ
मै
उत्तर प्रदेश हूँ
------------पारुल'पंखुरी'
चित्र -- साभार गूगल