कितने दिलकश होते हैं वो
उडी नींदों भरी रातें और बेचैनी भरे रंगीले दिन
नजरो से नजरो की मुलाकातों भरे नशीले दिन
खामोशियों में भी बेइंतहा बातों भरे सजीले दिन
धडकनों का एहसास दिलाते गुदगुदाते रसीले दिन
कितने दिलकश होते हैं वो ....
खुद से हरदम पूछे मासूम सवालातो भरे हंसाते दिन
तनहाइयों में रहने का बहाना बनाते गुनगुनाते दिन
कुछ अजीब सी उलझनों में उलझाते बलखाते दिन
बला की ख़ूबसूरती आईने में दिखाते इतराते दिन
कितने दिलकश होते हैं वो …
दिल की बात होंठो तक आने को कसमसाते दिन
इकरार और इजहार से पहले के टिमटिमाते दिन
मुहब्बत उसको भी है ये सोच के सकुचाते शरमाते दिन
मुहब्बत मुझको भी है ये सोच के लहलहाते मुस्कुराते दिन
-------------पारुल 'पंखुरी'
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